Advertisement

क्या है 'डिजिटल अरेस्ट'? जानें कैसे ठगों का शिकार बन रहे हैं बड़े-बड़े उद्योगपति

कोविड-19 के बाद से भारत में साइबर अपराधों का तेजी से विस्तार हुआ है। डिजिटल लेनदेन और ऑनलाइन सेवाओं में वृद्धि के साथ, अपराधियों के पास धोखाधड़ी के नए और नायाब तरीके मिल गए हैं। हाल ही में 2024 में प्रकाशित "वर्ल्ड साइबर क्राइम इंडेक्स" में यह खुलासा हुआ कि रूस, यूक्रेन, और चीन साइबर अपराध के बड़े केंद्र हैं, जबकि भारत 10वें स्थान पर है।
क्या है 'डिजिटल अरेस्ट'? जानें कैसे ठगों का शिकार बन रहे हैं बड़े-बड़े उद्योगपति
What is Digital Arrest? क्या आपको कभी ऐसी कॉल आई है जिसमें सामने वाला ने खुद को कोई बड़ा अफसर बताकर आपको धमकी दी हो? क्या आपने कभी सोचा है कि एक वीडियो कॉल पर ही आपको जेल भेजने की धमकी देकर लाखों रुपये की ठगी हो सकती है? इंटरनेट और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के बढ़ते प्रभाव के साथ ठगी के नए-नए तरीके भी तेजी से सामने आ रहे हैं। भारत इसमें पीछे नहीं है, और यह बात तब साबित हुई जब इसी साल आए 'साइबर क्राइम इंडेक्स' में भारत का नाम दसवें स्थान पर आया। भारत में आए दिन ठगी के सबसे नए तरीका सामने आते रहे है, लेकिन इन सब में सबसे खास है– डिजिटल अरेस्ट। ये तरीका आम लोगों को ही नहीं, बल्कि बड़े बिजनेसमैन और डॉक्टरों को भी निशाना बना रहा है। आखिर क्या है ये डिजिटल अरेस्ट? कैसे एक झूठी अदालत की सुनवाई में फंसाकर ठगों ने वर्धमान समूह के चेयरमैन से करोड़ों रुपये ऐंठ है? आइए, जानते हैं इस सनसनीखेज साइबर ठगी की कहानी और समझते हैं इससे कैसे बचा जा सकता है।

साल 2024 में पहली बार 'वर्ल्ड साइबर क्राइम इंडेक्स' ने ग्लोबल साइबर अपराधों का नक्शा पेश किया। 'मैपिंग ग्लोबल जियोग्राफी ऑफ साइबर क्राइम विद द वर्ल्ड साइबर क्राइम इंडेक्स' के तहत यह रिपोर्ट जारी हुई, जिसमें यह बताया गया कि दुनियाभर के विभिन्न देशों में साइबर क्राइम किस स्तर पर हो रहा है। इस सूची में रूस सबसे ऊपर है, उसके बाद यूक्रेन और चीन हैं, जबकि भारत दसवें स्थान पर आया है। भारत में साइबर अपराधों का आंकड़ा हर साल बढ़ता जा रहा है। इससे सबसे अधिक प्रभावित हैं वे लोग जो इंटरनेट का निरंतर इस्तेमाल करते हैं, लेकिन सुरक्षा की सावधानी नहीं बरतते।

हाल ही में सामने आया 'डिजिटल अरेस्ट' का मामला हर किसी को सोचने पर मजबूर कर रहा है। डिजिटल अरेस्ट, यानी ठगों का ऐसा खेल जिसमें वे झूठे आरोपों और नकली कानूनी कार्यवाहियों का सहारा लेकर लोगों को ठगते हैं। यह कहानी है पंजाब के उद्योगपति और वर्धमान समूह के चेयरमैन ओसवाल की, जिनसे करीब 7 करोड़ रुपये की ठगी की गई। ठगों ने सुप्रीम कोर्ट की एक फर्जी सुनवाई का नाटक कर उन्हें जेल भेजने की धमकी देकर यह रकम ट्रांसफर करवा ली।
क्या है 'डिजिटल अरेस्ट' और कैसे फंसते हैं लोग?
डिजिटल अरेस्ट ठगी का एक नायाब तरीका है, जिसमें साइबर ठग पुलिस, CBI, ED, या नारकोटिक्स जैसी सरकारी संस्थाओं के अधिकारी बनकर वीडियो कॉल पर सामने आते हैं। यह ठग किसी का विश्वास जीतने के लिए उन्हें झूठे आरोपों में फंसाने का दावा करते हैं, जैसे कि मनी लॉन्ड्रिंग, ड्रग्स ट्रांजेक्शन, या गलत बैंक खातों का इस्तेमाल। वीडियो कॉल पर अधिकारी की वर्दी पहने ये ठग इतने माहिर होते हैं कि वे पीड़ितों को भ्रमित कर देते हैं। उनका मकसद होता है मानसिक दबाव बनाकर पीड़ित से मोटी रकम ऐंठना।
ओसवाल का पूरा मामला 
इस मामले में ठगों ने खुद को केंद्रीय जांच एजेंसी का अधिकारी बताकर ओसवाल से संपर्क किया। उन्हें मनी लॉन्ड्रिंग केस में संदिग्ध बताया और सुप्रीम कोर्ट की फर्जी ऑनलाइन सुनवाई का नाटक किया, जिसमें एक व्यक्ति ने खुद को मुख्य न्यायाधीश के रूप में पेश किया। इसके बाद उनसे यह कहा गया कि इस केस से बचने के लिए उन्हें अपने सारे धनराशि को एक निर्दिष्ट बैंक खाते में जमा करना होगा। पुलिस ने आरोपियों से लगभग 5.25 करोड़ रुपए की जब्ती की है, जो भारत में इस तरह के मामलों में अब तक की सबसे बड़ी बरामदगी मानी जा रही है।
बुजुर्ग और उच्च पदों पर बैठे लोग ठगों के निशाने पर
साइबर अपराध विशेषज्ञ और सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता बताते हैं कि डिजिटल अरेस्ट का शिकार होने वाले अधिकांश लोग वे होते हैं, जिनकी प्रोफाइल अधिक जोखिम में होती है। ठगों के शिकार में मुख्य रूप से बुजुर्ग, डॉक्टर, इंजीनियर, रिटायर अधिकारी और व्यवसायी होते हैं, जो अपनी निजी जानकारी जैसे नाम, फोन नंबर, बैंक अकाउंट डिटेल्स साझा करते हैं। ठग इनकी जानकारी जुटाकर इनकी कमजोरियों को समझते हैं और डिजिटल अरेस्ट का सहारा लेकर इन्हें ठग लेते हैं।
डिजिटल अरेस्ट के सनसनीखेज केस
जुलाई 2024 में लखनऊ के प्रसिद्ध कवि नरेश सक्सेना को CBI अधिकारी बनकर ठगों ने वीडियो कॉल पर फंसाने का प्रयास किया। कॉलर ने कहा कि उनके आधार कार्ड से जुड़ा एक बैंक खाता मनी लॉन्ड्रिंग के लिए इस्तेमाल हो रहा है और उनका गिरफ्तारी वारंट जारी हो चुका है। हालांकि, सक्सेना ठगों के बहकावे में नहीं आए और मामले को वहीं छोड़ दिया।

इसके बाद अगस्त 2024 में पीजीआई लखनऊ की डॉक्टर रूचिका टंडन को भी इसी तरह का कॉल आया। इस बार कॉलर ने खुद को टेलीकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) का अधिकारी बताया। ठगों ने उनसे वीडियो कॉल पर धमकाकर 2 करोड़ 81 लाख रुपये ट्रांसफर करवाए। जब तक उन्हें एहसास हुआ कि वे ठगी का शिकार हो चुकी हैं, तब तक ठग उनसे अच्छी-खासी रकम उड़ा चुके थे।
ठगी से बचाव के उपाय
विराग गुप्ता का कहना है कि किसी भी सरकारी विभाग के अधिकारी वीडियो कॉल के माध्यम से गिरफ्तारी का वारंट जारी नहीं करते। कोर्ट से संबंधित कोई भी सूचना आपको फोन कॉल पर नहीं दी जाती है। अगर आपको कोई ऐसा कॉल मिले, तो उसके साथ लंबी बातचीत में न उलझें और कॉल को तुरंत काट दें। इसके बाद, मोबाइल नंबर की पहचान ट्रू-कॉलर या अन्य ऐप्स से कर सकते हैं और उस नंबर को ब्लॉक कर देना चाहिए। फोन और कंप्यूटर सॉफ्टवेयर को नियमित रूप से अपडेट रखें, इससे सुरक्षा की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। अनजान लिंक पर क्लिक न करें, क्योंकि कई बार ठग लिंक के माध्यम से भी आपके डिवाइस में सेंध लगाने का प्रयास करते हैं। साइबर क्राइम का शिकार होने पर स्थानीय पुलिस या साइबर सेल को सूचित करें। देशभर में हेल्पलाइन नंबर 1930 और www.cybercrime.gov.in के माध्यम से भी शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है।

भारत सरकार ने साइबर अपराधों की बढ़ती संख्या को देखते हुए हाल ही में कड़े कदम उठाने शुरू किए हैं। साइबर सुरक्षा विभाग समय-समय पर जनता को चेतावनी जारी करता है और जागरूकता फैलाने के लिए अभियान चलाए जाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की घटनाओं से बचने के लिए सरकार को और कड़े कानून बनाने चाहिए, जिससे कि साइबर अपराधियों पर सख्त कार्रवाई की जा सके।

साइबर अपराध के इन मामलों में 'डिजिटल अरेस्ट' की बढ़ती घटनाएं न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। इसके लिए जनता को जागरूक होना होगा और ठगों के बहकावे में न आकर अपनी सुरक्षा खुद करनी होगी।

Advertisement
Advertisement