क्या है 'वन नेशन, वन इलेक्शन' बिल? क्या यह भारत के लोकतंत्र को बदल देगा?
वन नेशन, वन इलेक्शन' विधेयक भारत की चुनावी प्रक्रिया में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। इस विधेयक का उद्देश्य लोकसभा और विधानसभा चुनावों को एक साथ कराना है, जिससे प्रशासनिक लागत और समय की बचत हो।
भारत में चुनाव एक ऐसा पर्व है, जो हर कुछ सालों में देशभर में अलग-अलग समय पर मनाया जाता है। लेकिन अब केंद्र सरकार ने इसे एक नई दिशा देने की पहल की है। ‘एक देश, एक चुनाव’ का विचार मोदी सरकार के एजेंडे में प्रमुखता से शामिल हो चुका है। इस विधेयक को संसद में पेश कर दिया गया है, लेकिन इसके लागू होने से लेकर इसके प्रभावों तक, यह विषय बहस का केंद्र बन चुका है। आइए विस्तार से जानते हैं इस विधेयक से जुड़ी हर जरूरी बात।
क्या है ‘एक देश, एक चुनाव’ बिल?
‘एक देश, एक चुनाव’ का मतलब है कि देशभर में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएं। वर्तमान में, अलग-अलग समय पर चुनाव होने से सरकारों और प्रशासन को बार-बार चुनावी तैयारियों में जुटना पड़ता है, जिससे समय और पैसे दोनों की भारी खपत होती है। इस विधेयक का उद्देश्य है चुनावी खर्च में कटौती, समय की बचत, और प्रशासनिक प्रक्रिया को सरल बनाना। लेकिन यह सिर्फ एक विचार नहीं, बल्कि इसे लागू करना संविधान में बड़े बदलाव और चुनाव प्रणाली में बड़े सुधार की मांग करता है।
कैसे लागू होगा यह विधेयक?
संवैधानिक संशोधन: इसे लागू करने के लिए संविधान के 5 प्रमुख अनुच्छेदों—83, 85, 172, 174 और 356—में संशोधन करना होगा। ये अनुच्छेद संसद और विधानसभाओं के कार्यकाल, सत्रों की अवधि, और राष्ट्रपति शासन जैसे पहलुओं से जुड़े हैं।
संसद और राज्यों की मंजूरी: इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत से पास करना होगा। इसके बाद, इसे कम से कम 15 राज्यों की विधानसभाओं की मंजूरी चाहिए।
राष्ट्रपति की स्वीकृति: राज्यों की सहमति के बाद, राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ यह विधेयक कानून बनेगा।
व्यवहारिक क्रियान्वयन: चुनाव आयोग को इसके लिए लाखों ईवीएम और वीवीपैट की आवश्यकता होगी। इनकी उत्पादन और परीक्षण प्रक्रिया में ही कई साल लग सकते हैं।
कितना समय लगेगा इसे लागू होने में?
चुनाव आयोग के मुताबिक, इस कानून को पूरी तरह लागू होने में 10 साल का समय लग सकता है। मौजूदा लोकसभा का कार्यकाल 2029 में समाप्त होगा।
उसके बाद, निर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक के दौरान इसे अधिसूचित किया जा सकता है। ईवीएम और अन्य संसाधनों की तैयारियों में भी लगभग 3-5 साल का समय लगेगा। इसलिए, ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ का सपना फिलहाल दूर की कौड़ी लगता है।
क्या होंगे फायदे?
बार-बार चुनाव होने से भारी मात्रा में सरकारी धन खर्च होता है। एक साथ चुनाव से यह खर्च कम होगा। चुनावों के दौरान प्रशासन चुनावी प्रक्रिया में व्यस्त रहता है, जिससे विकास कार्य प्रभावित होते हैं। एक साथ चुनाव से यह समस्या खत्म होगी। बार-बार चुनाव होने से राजनीतिक दल और जनता दोनों थकावट महसूस करते हैं। यह समस्या भी सुलझ सकती है। एक साथ चुनाव से सरकारों को पूरे 5 साल का कार्यकाल मिलेगा, जिससे नीतियों को बेहतर तरीके से लागू किया जा सकेगा।
क्या हैं चुनौतियां?
संवैधानिक संशोधन: संविधान में इतने बड़े पैमाने पर बदलाव करना आसान नहीं होगा। राज्यों की सहमति जुटाना भी कठिन है।
राजनीतिक असहमति: कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल इस विधेयक का विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि इससे लोकतंत्र की विविधता खत्म हो सकती है।
व्यवहारिक समस्याएं: भारत जैसे विशाल देश में एक साथ चुनाव कराना प्रशासनिक और तकनीकी दृष्टि से एक बड़ी चुनौती है।
जनता की तैयारी: मतदाताओं को लोकसभा और विधानसभा के उम्मीदवारों के बीच फर्क समझने और एक साथ वोट देने की आदत डालनी होगी।
पक्ष-विपक्ष के तर्क
वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर भाजपा का कहना है कि ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ लोकतंत्र को मजबूती देगा और चुनावी प्रक्रिया को सरल बनाएगा। जबकि कांग्रेस इसके विरोध में है, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल इसे लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ बताते हैं। उनका कहना है कि बार-बार चुनाव जनता के मुद्दों को उठाने का एक जरिया है।
‘एक देश, एक चुनाव’ भारत के चुनावी इतिहास में एक बड़ा बदलाव ला सकता है। लेकिन इसे लागू करना सिर्फ एक विधेयक पास करने तक सीमित नहीं है। यह एक जटिल और लंबी प्रक्रिया है, जिसमें संवैधानिक संशोधन, संसाधनों की तैयारी, और राजनीतिक सहमति जैसे कई पहलू शामिल हैं।