क्या है नॉर्मेलाइजेशन सिस्टम और क्यों हो रहा है इसका विरोध?
नॉर्मेलाइजेशन सिस्टम विभिन्न दिनों और पालियों में आयोजित होने वाली परीक्षाओं के परिणामों में समानता लाने के लिए लागू किया जाता है। नॉर्मेलाइजेशन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विभिन्न पाली में अलग-अलग प्रश्न पत्रों के कारण उत्पन्न होने वाले कठिनाई स्तर के भेद को समाप्त किया जा सके।
उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) ने हाल ही में अपनी पीसीएस प्रीलिम्स-2024 और RO/ARO-2023 की परीक्षा में नॉर्मेलाइजेशन सिस्टम लागू करने का निर्णय लिया था। इसके बाद, यूपी के अभ्यर्थी इसका विरोध करते हुए आंदोलन पर उतर आए थे। यही कारण था कि UP PCS परीक्षा एक ही दिन आयोजित करने का फैसला लिया गया। इस बीच, बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) ने भी अपने नोटिस में नॉर्मेलाइजेशन लागू करने की बात कही, जिससे बिहार में भी अभ्यर्थी विरोध प्रदर्शन करने लगे हैं। वहीं, संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) पहले से ही अपनी केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में नॉर्मेलाइजेशन का इस्तेमाल करता आ रहा है।
तो, सवाल यह उठता है कि नॉर्मेलाइजेशन सिस्टम क्या है, इसके फायदे क्या हैं, और क्या इससे किसी प्रकार का नुकसान भी हो सकता है? आइए, इस लेख में हम नॉर्मेलाइजेशन सिस्टम को समझने की कोशिश करते हैं और यह भी जानने की कोशिश करते हैं कि यह परीक्षा प्रक्रिया को कितना प्रभावित करता है।
नॉर्मेलाइजेशन सिस्टम क्या है?
नॉर्मेलाइजेशन सिस्टम एक खास तरीके का मूल्यांकन प्रणाली है, जो विशेष रूप से तब लागू किया जाता है जब किसी परीक्षा का आयोजन अलग-अलग दिन या अलग-अलग पालियों में किया जाता है। इस प्रणाली का मुख्य उद्देश्य यह है कि एक ही परीक्षा के प्रश्न पत्र के स्तर में अंतर को समाप्त किया जा सके। जब एक परीक्षा अलग-अलग दिनों या पालियों में आयोजित होती है, तो प्रत्येक दिन का प्रश्न पत्र अलग-अलग होता है, जिससे सवालों की कठिनाई का स्तर भी अलग-अलग हो सकता है। इस परिस्थिति में, नॉर्मेलाइजेशन सिस्टम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होता है कि हर अभ्यर्थी को एक समान अवसर मिले और किसी के साथ भेदभाव न हो।
नॉर्मेलाइजेशन के तहत, हर अभ्यर्थी को उनकी पंक्ति में आए अंक के आधार पर एक परसेंटाइल स्कोर दिया जाता है। यह स्कोर अभ्यर्थी के अंक के साथ-साथ उनके द्वारा दिए गए सवालों की सही संख्या, और उनके द्वारा उपस्थित परीक्षा के कठिनाई स्तर को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जाता है।
कैसे होता है नॉर्मेलाइजेशन का कार्य?
जब कोई परीक्षा अलग-अलग पालियों में आयोजित की जाती है, तो अक्सर एक पाली में अभ्यर्थियों के अंक अधिक होते हैं और दूसरी पाली में कम। ऐसे में, यह संभव है कि दूसरी पाली का प्रश्न पत्र अधिक कठिन हो, लेकिन नॉर्मेलाइजेशन की प्रक्रिया के कारण, इस पाली के अभ्यर्थियों के अंक बढ़ा दिए जाते हैं ताकि उन्हें समानता का लाभ मिल सके।उदाहरण के लिए, यदि किसी पाली में कुछ आसान सवाल पूछे गए हैं और परिणामस्वरूप अभ्यर्थियों के अंक अधिक आए, तो उस पाली के अंक एक मानक के आधार पर बढ़ा दिए जाते हैं। दूसरी ओर, यदि किसी अन्य पाली का प्रश्न पत्र अधिक कठिन है, तो उस पाली के अभ्यर्थियों के अंक कम नहीं किए जाते, बल्कि उन्हें भी उसी मानक के हिसाब से बढ़ाया जाता है ताकि दोनों पालियों के अभ्यर्थियों को समान अवसर मिल सके।
नॉर्मेलाइजेशन के फायदे और नुकसान दोनों ही पक्षों में आते हैं। एक तरफ, इस प्रक्रिया से यह सुनिश्चित होता है कि किसी भी पाली या दिन के प्रश्न पत्र का कठिनाई स्तर न किसी एक अभ्यर्थी को नुकसान पहुंचाए और न ही किसी को अतिरिक्त लाभ मिले। यह व्यवस्था उन अभ्यर्थियों के लिए फायदेमंद होती है जो कठिन पाली में बैठकर अधिक अंक प्राप्त करते हैं, क्योंकि उनके अंक उन्हें नॉर्मेलाइजेशन के तहत बढ़ा दिए जाते हैं।
लेकिन दूसरी ओर, नॉर्मेलाइजेशन के कारण कुछ अभ्यर्थियों को नुकसान भी हो सकता है। जैसे कि यदि किसी पाली के प्रश्न पत्र में कुछ गलत सवाल पूछे गए, तो नॉर्मेलाइजेशन प्रक्रिया के तहत उनके अंक सही कर दिए जाएंगे। लेकिन, यह भी संभव है कि कुछ अभ्यर्थियों ने इस सवाल का सही उत्तर दिया हो, फिर भी उन्हें सही अंक न मिलें, क्योंकि नॉर्मेलाइजेशन के तहत उनकी कठिनाई को सही किया जाता है।
क्या योग्यता का निर्धारण ठीक तरीके से किया जा सकता है?
यह सवाल अक्सर अभ्यर्थियों के मन में उठता है कि नॉर्मेलाइजेशन के बाद योग्यता का निर्धारण कैसे किया जाएगा? यदि किसी पाली के प्रश्न पत्र को कठिन माना गया और उस पाली के अभ्यर्थियों के अंक बढ़ाए गए, तो क्या यह योग्यता के सही मानक को प्रभावित नहीं करेगा? यही वह बिंदु है जहां अभ्यर्थियों का विरोध और भी तेज हो जाता है। उनका कहना है कि पहले जब सभी अभ्यर्थियों को एक ही दिन एक ही प्रश्न पत्र मिलता था, तो योग्यता का निर्धारण अधिक पारदर्शी होता था।
UPSC का नॉर्मेलाइजेशन सिस्टम
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) पहले से ही अपनी केंद्रीय भर्ती परीक्षाओं में नॉर्मेलाइजेशन का उपयोग करता है। UPSC की परीक्षाओं में नॉर्मेलाइजेशन की प्रक्रिया थोड़ी अलग है। यहां, परीक्षा में शामिल सभी अभ्यर्थियों के अंकों का औसत निकाला जाता है। फिर, हर अभ्यर्थी के अंक को औसत अंकों से तुलना करके नॉर्मेलाइज किया जाता है। इसके बाद, नॉर्मलाइजेशन के तहत अंक 100 प्वाइंट के स्केल पर बदल दिए जाते हैं और यही अंक अभ्यर्थियों की रैंक निर्धारित करने के लिए उपयोग किए जाते हैं।
नॉर्मेलाइजेशन एक ऐसी प्रक्रिया है, जो बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करती है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप कुछ अभ्यर्थियों को नुकसान भी हो सकता है। यह परीक्षा प्रणाली के अंकों को तर्कसंगत बनाने का प्रयास करती है, लेकिन जब इसमें त्रुटियाँ या गलत प्रश्न पूछे जाएं, तो यह विवादों का कारण बन सकती है। फिर भी, यह कहना गलत नहीं होगा कि नॉर्मेलाइजेशन का उद्देश्य हमेशा सबसे ज्यादा पारदर्शिता और समानता सुनिश्चित करना होता है, जिससे किसी अभ्यर्थी के साथ अन्याय न हो।