कौन सा है वो मुस्लिम देश जहां दूसरी शादी गैरकानूनी है? जानिए पूरा मामला
बहुविवाह को लेकर मुस्लिम देशों में अक्सर अलग-अलग कानून होते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा मुस्लिम देश भी है जहां दूसरी शादी करना कानूनन अपराध है?

क्या आपको लगता है कि मुस्लिम देशों में चार शादी करना सामान्य बात है? अगर हां, तो यह रिपोर्ट आपकी सोच बदल देगी। आज हम एक ऐसे देश की बात कर रहे हैं जहां मुस्लिम होने के बावजूद दूसरी शादी करना जुर्म है—और इस अपराध पर सजा भी मिलती है। जी हां, बात हो रही है उस देश की जो खुद को आधुनिक सोच का प्रतीक मानता है, लेकिन जिसकी जड़ें इस्लामी परंपराओं में गहरी हैं।
तुर्की जहां बहुविवाह है कानूनन अपराध
तुर्की... एक ऐसा देश जो भले ही मुस्लिम आबादी के मामले में 90% से अधिक हो, लेकिन इसकी संवैधानिक व्यवस्था पूरी तरह सेक्युलर है। यहां इस्लाम एक बड़ा धर्म ज़रूर है, लेकिन संविधान में धर्म और राज्य को अलग रखने का स्पष्ट प्रावधान है। यही वजह है कि 1926 में जब तुर्की ने Swiss Civil Code को अपनाया, तभी से बहुविवाह यानी Polygamy पर कानूनी रोक लगा दी गई।
आज तुर्की में अगर कोई पुरुष, चाहे वह मुस्लिम ही क्यों न हो, एक शादी के रहते दूसरी शादी करता है, तो उसे सीधे 5 साल तक की जेल हो सकती है। यह कानून तुर्की की Civil Code Article 143 के तहत लागू है। यानी जहां भारत जैसे देश में बहस चल रही है यूनिफॉर्म सिविल कोड पर, वहीं तुर्की ने करीब 100 साल पहले ही इसे सख्ती से लागू कर दिया था।
महिला अधिकारों की रक्षा में सबसे आगे
अब आइए अफ्रीका के एक मुस्लिम देश की ओर—ट्यूनीशिया। यहां 1956 में Personal Status Code लागू किया गया, जिसे पूरे अरब जगत में सबसे प्रगतिशील माना जाता है। इस कानून के तहत बहुविवाह पर न केवल रोक लगाई गई, बल्कि इसे आपराधिक कृत्य घोषित किया गया।
इसका मुख्य उद्देश्य था—महिलाओं को बराबरी का दर्जा देना और पारिवारिक ढांचे को मजबूत करना। अगर कोई पुरुष ट्यूनीशिया में दूसरी शादी करता पाया जाता है, तो उसे जेल हो सकती है और उसकी पहली शादी भी कानूनी संकट में पड़ सकती है। ट्यूनीशिया ने बहुविवाह पर रोक लगाकर मुस्लिम दुनिया को एक नई दिशा दी थी।
रूस जहां धर्म से ऊपर है यूनिफॉर्म सिविल कोड
अब बात करते हैं एक गैर-मुस्लिम लेकिन बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश की—रूस। रूस में लगभग 14 मिलियन मुसलमान रहते हैं, लेकिन यहां शादी और पारिवारिक कानून केवल एक ही सिविल कोड से संचालित होते हैं।
रूस की फैमिली कोड की धारा 14 के तहत अगर कोई पुरुष पहले से शादीशुदा है और वह दोबारा शादी करता है, तो यह शादी कानूनन अमान्य मानी जाएगी। न केवल यह शादी रद्द की जाएगी, बल्कि उस पुरुष के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है। 2015 में एक जनमत सर्वे किया गया, जिसमें 90% से ज्यादा रूसी नागरिकों ने बहुविवाह का विरोध किया। केवल 4% लोग ही इसके समर्थन में थे। यह सर्वे ये बताता है कि रूस में समाज और सरकार दोनों ही बहुविवाह के खिलाफ हैं, चाहे व्यक्ति किस भी धर्म का क्यों न हो।
तजाकिस्तान एक और मुस्लिम देश जहां बहुविवाह पर रोक
तजाकिस्तान एक छोटा सा मध्य एशियाई मुस्लिम देश है, लेकिन यहां की सोच और कानून काफी आधुनिक हैं। यहां की सरकार ने स्पष्ट कर रखा है कि बहुविवाह की कोई जगह नहीं है। यहां के क्रिमिनल कोड आर्टिकल 170 के तहत बहुविवाह को दंडनीय अपराध माना गया है। अगर कोई भी नागरिक दो शादियां करता है, तो उसे तीन साल तक की जेल हो सकती है। इसका मुख्य उद्देश्य है महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और जनसंख्या नियंत्रण।
तो फिर भारत में क्यों है बहस?
जब हम देखते हैं कि मुस्लिम देश जैसे तुर्की, ट्यूनीशिया और तजाकिस्तान जैसे देश खुद बहुविवाह को गैरकानूनी मानते हैं, तो सवाल उठता है—क्या भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करना जरूरी नहीं हो जाता? भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत एक से ज्यादा शादी की इजाजत है, जबकि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत यह अपराध है। इससे देश के अलग-अलग समुदायों में कानून के दोहरे मापदंड बनते हैं। उत्तराखंड ने इस अंतर को मिटाते हुए UCC लागू कर दिया है, जिससे अब वहां हर धर्म के व्यक्ति को एक ही शादी करने की अनुमति है।
आधुनिक समाज की सोच इस ओर इशारा करती है कि विवाह एक सामाजिक और भावनात्मक बंधन है, न कि शक्ति प्रदर्शन या परंपरा निभाने का ज़रिया। जब कोई देश अपनी महिलाओं को बराबरी का अधिकार देता है, तो वह समाज तेज़ी से प्रगति करता है। बहुविवाह न सिर्फ महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालता है, बल्कि बच्चों के पालन-पोषण और सामाजिक संतुलन पर भी बुरा प्रभाव डाल सकता है।
इस रिपोर्ट से साफ है कि सिर्फ धर्म ही किसी कानून को सही या गलत नहीं बनाता। समाज के भले और समानता के लिए जब कानून बनाए जाते हैं, तभी एक राष्ट्र सशक्त बनता है। अगर मुस्लिम आबादी वाले देश खुद बहुविवाह पर रोक लगा सकते हैं, तो भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में इस पर खुलकर चर्चा होनी चाहिए। यह न सिर्फ महिला अधिकारों को मजबूत करेगा, बल्कि देश में एक समान नागरिक संहिता की दिशा में बड़ी पहल भी होगी।