झारखंड में हेमंत सोरेन की वापसी और इंडिया गठबंधन की जीत की 5 बड़ी वजहें
झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ चुके हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा की वर्तमान हेमंत सोरेन सरकार प्रचंड जीत के साथ सत्ता बचाने में कामयाब रही है। दो चरणों में कुल 81 सीटों पर हुए मतदान में झारखंड मुक्ति मोर्चा और इंडिया गठबंधन करीब 51 से ज्यादा सीटों पर जीत दर्ज करती नजर आ रही है। मतगणना की शुरुआती राउंड में कई सीटों पर लगातार चल रहे बढ़त को देखते हुए। यह तय हो गया था कि हेमंत सोरेन सरकार की वापसी होने जा रही है। लेकिन शाम होते-होते तस्वीर साफ हो गई। झारखंड में हेमंत सोरेन इंडिया गठबंधन के साथ पूर्ण बहुमत के साथ अपनी सरकार बनाने जा रहे हैं। बीजेपी और इंडिया गठबंधन करीब 25 से 26 सीटों पर सिमटता नजर आ रहा है। ऐसे में दोनों ही दलों के प्रदर्शन को देखते हुए यह जानना जरूरी है कि आखिर झारखंड मुक्ति मोर्चा और इंडिया गठबंधन कैसे और किन वजहों से सरकार में वापसी करने में कामयाब हुई। वहीं बीजेपी कहां पर कमजोर नजर आई। इंडिया गठबंधन की वापसी पर 5 बड़ी वजहें सामने आई हैं।
1 - कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा शुरू से आखिर तक एकजुट नजर आई
झारखंड विधानसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन की वापसी में जो सबसे अहम चीज नजर आई। वह कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा का शुरू से अंत तक एकजुट रहना। इंडिया गठबंधन ने स्थानीय मुद्दों पर ज्यादा फोकस किया। क्षेत्रीय दल भी उसके साथ नजर आए। झारखंड राज्य की सबसे बड़ी क्षेत्रीय पार्टी है। जिसकी वजह से मतदाताओं पर अच्छी पकड़ है। क्षेत्रीय पार्टियों को अपने मतदाताओं की ताकत और कमजोरी का अंदाजा होता हैं। झारखंड मुक्ति मोर्चा को कांग्रेस पार्टी का साथ मिला। देश की बड़ी पार्टी के साथ होने से वोटर्स के अंदर एक भरोसा जगा। भले ही कांग्रेस की स्थिति इस वक्त खराब चल रही है। लेकिन बड़े बुजुर्गों में आज भी कांग्रेस की अपनी अलग छवि बनी हुई है। कांग्रेस पार्टी के कई कट्टर वोटर ऐसे हैं । जो कहीं और नहीं जाते। इन दोनों के अलावा इंडिया गठबंधन में शामिल अन्य पार्टियों ने भी अपने वोटर को एकजुट करने में कामयाबी हासिल की। इन पार्टियों ने लोकल मुद्दों पर वोट मांगे और राष्ट्रीय मुद्दे पूरी तरीके से नदारद रहे। जिसका फायदा मिला।
2 - इंडिया गठबंधन ने आदिवासियों को किया टारगेट
झारखंड में लगभग 60 से 65 सीटों पर आदिवासी और ग्रामीण वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं। इंडिया गठबंधन ने आदिवासियों और ग्रामीणों की हर समस्याओं को उठाया और उन पर बात की। इनमें वनाधिकार,जमीन की सुरक्षा और आदिवासी अधिकारों जैसे मुद्दों पर उनके अधिकार को लेकर भरोसा दिलाया। जिसकी वजह से आदिवासियों ने भी इंडिया गठबंधन का खुलकर समर्थन किया। बीजेपी ने भी यह पैंतरा अपनाया। लेकिन वह फेल रहा। यहां के आदिवासियों ने इंडिया गठबंधन को चुना। इस चुनाव में सरना कोड लागू किए जाने का भी मुद्दा चर्चा में रहा। जिसे कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा आदिवासियों को समझाने में सफल रही। बता दें कि सरना का मतलब होता है। आदिवासियों का एक अलग धर्म होना।
3 - हेमंत सोरेन का जेल जाना चुनाव के लिए फायदेमंद साबित हुआ
झारखंड विधानसभा चुनाव के कुछ महीनों पहले हेमंत सोरेन पर ईडी ने बड़ी कार्रवाई की थी। जिसकी वजह से सोरेन को जेल भी जाना पड़ा था। अधिकतर लोगों ने इस कार्रवाई को केंद्र सरकार द्वारा बदले की कार्रवाई बताया था। जेल जाने के बाद हेमंत सोरेन और भी ज्यादा चर्चाओं में आ गए। उनकी छवि इंडिया ब्लॉक में मजबूत नेता के तौर पर बन गई। परिवार में बगावत हुई उसकी वजह से भी सोरेन को फायदा मिला। सोरेन को जेल भेजे जाने से प्रदेश की जनता काफी नाराज हुई और बीजेपी के खिलाफ आ गई। बीजेपी पर आरोप लगे कि उसने सत्ता पाने के लिए और परिवार को तोड़ने के खातिर सोरेन को जेल भेजा। जिस वक्त हेमंत सोरेन का बुरा दौर चल रहा था। उसी दौरान चंपाई सोरेन और सीता सीता सोरेन ने पार्टी बदल दी। इससे हेमंत को बड़ा फायदा मिला और सारी सहानुभूति अपने साथ लेकर चले गए। बीजेपी वर्तमान मुख्यमंत्री को घेरने में नाकामयाब रही। चुनाव से पूर्व हेमंत ने कई तरह की योजनाएं को शुरू करने की बात कही। जिस पर प्रदेश की जनता को बड़ा भरोसा हुआ। महिलाओं के लिए रोजगार,बेरोजगारों के लिए योजनाएं और सामाजिक सुरक्षा के साथ कई अन्य योजनाएं भी जीत में अहम भूमिका निभाई।
4 - झारखंड में बीजेपी की हर एक रणनीति फेल
वर्तमान में बीजेपी रणनीति बनाने में सबसे बड़ी पार्टी मानी जाती है। 2014 से बीजेपी का संगठन सबसे मजबूत है। बीजेपी चुनाव जीतने, संगठन की रणनीति बनाने में सबसे मजबूत नजर आती है। लेकिन झारखंड चुनाव में वह रणनीति बनाने में नाकामयाब रही। इनमें कई तरह की कमजोरी नजर आई और लोकल मुद्दों से भटक कर राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ने की कोशिश की। आखिरी समय में बीजेपी ने सीटों का बंटवारा किया। इस चुनाव में बीजेपी उम्मीदवारों के चयन में भी फेल रही। स्थानीय मुद्दों को न पकड़ना हार की सबसे बड़ी वजह बनी।
5 - इंडिया ब्लॉक की हर एक रणनीति कामगार साबित हुई
इंडिया गठबंधन ने सीटों का तरीके से बंटवारा किया। उसे यह पता था कि वोटों को बिखरने से कैसे रोकना है। बीजेपी इसमें पूरी तरीके से फेल रही। इंडिया गठबंधन ने हर एक रैली और चुनावी प्रचार-प्रसार में अपनी एकता को दिखाने की कोशिश की। इससे मतदाताओं में भरोसा बढ़ा। इंडिया गठबंधन ने बीजेपी को वोटर्स की नजरों में लोकतंत्र और संविधान को कुचलने वाली पार्टी की तरह दिखाया। लोकसभा चुनाव की तरह लोकतंत्र और संविधान का मुद्दा भी इस चुनाव में इंडिया गठबंधन के लिए काम कर गया।