केदारनाथ चुनाव : क्षेत्रवाद का चक्रव्यूह तोड़ने वाले पहले CM बने धामी
केदारनाथ में बीजेपी की जीत के पीछे राजनीतिक जानकर कई फैक्टर गिना रहे हैं. कांग्रेस पिछला उपचुनाव जीतने के बाद काफी जोश में थी. उसने बदरीनाथ और मंगलोर सीट जीती थी. कांग्रेस ने केदारनाथ में पूरी ताकत लगाई थी. लेकिन सीएम धामी ने खुद इस चुनाव में मोर्चा संभाल लिया था.
उत्तराखंड की केदारनाथ सीट पर उपचुनाव संपन्न हो गया है. इस चुनाव में बीजेपी की जीत ने यह साबित किया है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सिर्फ कुमाऊं में ही नहीं बल्कि गढ़वाल में भी जनता की पहली पसंद हैं. उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास में पुष्कर सिंह धामी पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं जो क्षेत्रवाद के चक्रव्यूह को भेद पाए हैं. उनके नेतृत्व में गढ़वाल के नेता भी खुद को सहज महसूस करते हैं और इसका सबसे बड़ा उदाहरण केदारनाथ विधानसभा का उपचुनाव है.
केदारनाथ में बीजेपी की जीत के पीछे राजनीतिक जानकर कई फैक्टर गिना रहे हैं. कांग्रेस पिछला उपचुनाव जीतने के बाद काफी जोश में थी. उसने बदरीनाथ और मंगलोर सीट जीती थी. कांग्रेस ने केदारनाथ में पूरी ताकत लगाई थी. लेकिन सीएम धामी ने खुद इस चुनाव में मोर्चा संभाल लिया था. धामी पहले ऐसे मुख्यमंत्री देखे गए जो उपचुनावों में भी गांव-गांव जाकर जनसंपर्क कर रहे थे. कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री ने हरीश रावत ने कोशिश की थी कि धामी को गढ़वाल विरोधी दिखाकर माहौल बदला जाए. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया.
धामी पहले सीएम जो गढ़वाल-कुमाऊं दोनों की पसंद
उत्तराखंड में नारायण दत्त तिवारी को छोड़ दे तो बीजेपी और कांग्रेस के सभी पूर्व मुख्यमंत्री गढ़वाल और कुमाऊं के जाल में फंसे रहे. वह इस क्षेत्रवाद के चक्रव्यूह को नहीं भेद पाए. लेकिन जिस तरीके से पुष्कर सिंह धामी ने पिछले कुछ सालों में काम किया वह पौड़ी में भी पॉपुलर दिखे हैं और टिहरी, हरिद्वार में भी. 2022 विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी हाईकमान ने गढ़वाल के 2 बड़े नेताओं त्रिवेंद्र सिंह रावत और तीरथ सिंह रावत को हटाकर युवा नेता पुष्कर सिंह धामी को सीएम बनाया. 6 महीने धामी को बतौर सीएम अपना काम दिखाने का मौका मिला. जिसके बाद धामी की पॉजिटिव पॉलिटिक्स, दोनों मंडलों के नेताओं में सामंजस्य बिठाने की कला ने उत्तराखंड में प्रत्येक 5 साल में सरकार बदलने वाले तिलिस्म को तोड़ दिया. 22 साल में पहली बार किसी भी पार्टी की सरकार उत्तराखंड में रिपीट हुई थी.
केदारनाथ चुनाव दे गया 27 के लिए संकेत
केदारनाथ चुनाव सीएम पुष्कर सिंह धामी के लिए सिर्फ चुनाव नहीं था. बल्कि एक अग्निपरीक्षा थी. यह चुनाव 2027 के लिए प्री बोर्ड एग्जाम की तरह था. जिसमें परीक्षा सीएम धामी की थी. अगर बीजेपी यह चुनाव हार जाती तो शायद उनके विरोधी यह साबित करने की कोशिश करते कि धामी दोनों मंडलों (कुमाऊं-गढ़वाल) में बराबर लोकप्रिय नहीं हैं. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. जनता को मनाने और पार्टी को जिताने के लिए सीएम खुद केदारनाथ के गांव-गांव गए. लोगों से मुद्दों पर बात की. उनकी बात सुनी और कहा कि जहां कमी रह गई है उसे पूरा किया जाएगा. एक तरीके से धामी ने जनता को समझा दिया था कि क्षेत्रवाद का जहर घोलने वालों से सावधान रहे. बार-बार बदलाव से कुछ नहीं होता. काम करने से सब कुछ होता है.
गढ़वाल के नेताओं की पहली पसंद पुष्कर सिंह धामी
केंद्र की पसंद बनने के बाद धामी के सामने सबसे बड़ा चैलेंज यही था कि वह कैसे गढ़वाल के नेताओं कार्यकर्ताओं को मनाएं. लेकिन उन्होंने 1 साल में यह काम कर दिखाया. अब गढ़वाल के ज्यादातर नेता धामी के पीछे कदम से कदम मिलाकर पार्टी के लिए काम करते नजर आते हैं. गढ़वाल मंडल में बीजेपी के कार्यकर्ता सीएम धामी के नेतृत्व में खुद को ज्यादा सहज महसूस करते हैं. उसकी वजह है धामी वहां राजनीतिक स्थिरता लेकर आए हैं. सीएम धामी ने केंद्र और राज्य दोनों में तालमेल बिठाया है. दोनों जगह पर वह पहली पसंद है.
अब आगे क्या...
उत्तराखंड में कांग्रेस उम्मीद लगाए बैठी है कि 2027 में एंटी इनकम्बेंसी का उन्हें फायदा मिलेगा. लेकिन जिस तरीके से सीएम धामी ने पूरे उत्तराखंड को एक साथ लाकर खड़ा कर दिया. ऐसे में लगता नहीं है कि जनता उनका साथ छोड़ने वाली है. हाईकमान को भी शायद उत्तराखंड में पहला ऐसा सीएम मिला है जो पूरे उत्तराखंड की पसंद बना हुआ है. यहां तक कि सीएम धामी ने जो किया है वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'एक हैं तो नेक हैं' के नारे पर सटीक बैठता है.