बिहार में राहुल ने खेला दलित कार्ड राजद को मिली बड़ी टेंशन! लालू से बढ़ती नजदीकियां अखिलेश सिंह को ले डूबी! आखिर क्या रही वजह ?
बता दें कि कांग्रेस हाईकमान ने अखिलेश कुमार सिंह को कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया है। अखिलेश को हटाने के बाद उनकी जगह पार्टी के वर्तमान विधायक राजेश कुमार को बिहार का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। राजेश दलित समुदाय से आते हैं। ऐसे में आने वाले चुनाव में कांग्रेस द्वारा दलित समुदाय के वोटरों को साधने की पूरी कोशिश की गई है।

राजद के मुखिया लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव को राहुल गांधी ने 440 बोल्ट का करारा झटका दिया है। बिहार इलेक्शन से कुछ दिन पहले ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बिहार कांग्रेस में बड़ा फेरबदल किया है। बता दें कि कांग्रेस हाईकमान ने अखिलेश प्रसाद सिंह को कांग्रेस अध्यक्ष पद से हटा दिया है। अखिलेश को हटाने के बाद उनकी जगह पार्टी के वर्तमान विधायक राजेश कुमार को बिहार का नया प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। राजेश दलित समुदाय से आते हैं। ऐसे में आने वाले चुनाव में कांग्रेस द्वारा दलित समुदाय के वोटरों को साधने की पूरी कोशिश की गई है। वहीं अखिलेश प्रसाद सिंह के हटाए जाने के पीछे कई बड़ी वजहें निकल कर सामने आई हैं। वर्तमान अध्यक्ष राजेश कुमार के नेतृत्व में पार्टी नई रणनीति के साथ चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। तो चलिए जानते हैं कि आखिर अखिलेश कुमार सिंह को अध्यक्ष पद से हटाए जाने के पीछे वह कौन से बड़े कारण रहे ? वहीं कांग्रेस ने राजेश कुमार को बिहार प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए चुनकर कैसे राजद की चिंता बढ़ा दी है ?
राहुल गांधी ने दलित वोट बैंक पर निशाना साध राजद की बढ़ाई टेंशन
दलित समुदाय से आने वाले राजेश कुमार को कांग्रेस ने बिहार का नया प्रदेश अध्यक्ष चुना है। पार्टी का राजेश कुमार को चुनने का फैसला काफी हद तक दलित वोटरों पर निशाना साधने को लेकर देखा जा रहा है। राजेश कुमार औरंगाबाद जिले की कुटंबा विधानसभा से विधायक हैं। वह 2020 विधानसभा चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं। कांग्रेस ने एनडीए दल के दलित नेता चिराग पासवान और जीतन राम मांझी का तोड़ निकालने और दलित वोट बैंकों पर भी पूरा निशाना साधा है। वही राजद के भी सपने को चूर करने की पूरी कोशिश की है। एनडीए से ज्यादा कांग्रेस ने इंडिया ब्लॉक की पार्टी राजद के दलित वोट बैंक पर करारा प्रहार किया है। राहुल गांधी जो की लालू और तेजस्वी के काफी खास रहते हैं। लेकिन उन सब की परवाह किए बिना ही उन्होंने बड़ा दांव खेला है। वहीं राजेश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के पीछे पिछले प्रभारी भक्त चरण दास की बड़ी भूमिका बताई जा रही है।
अखिलेश प्रसाद सिंह पर लगे कई बड़े आरोप
1 - कांग्रेस छोड़ खुद की राजनीति में दिलचस्पी रखने लगे
अखिलेश प्रसाद सिंह पर काफी दिनों से यह आरोप लगता रहा है कि उन्होंने सेल्फ पॉलिटिक्स में इंटरेस्ट ले ली है। उनका राज्यसभा का कार्यकाल भी पूरा हो गया था। लेकिन दोबारा कांग्रेस से राज्यसभा में गए। अपने बेटे आकाश को भी महाराजगंज से टिकट दिलाया। लेकिन वह बीजेपी प्रत्याशी से हार गए। दरअसल,यह राजपूत और भूमिहार बाहुल्य सीट थी। इसके अलावा किसान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष धीरेंद्र कुमार सिंह ने गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने बाकायदा पत्र लिखकर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को टिकट बंटवारे में लेनदेन की बात कही थी। इसके अलावा बाहरी प्रत्याशी को टिकट दिया। 9 सीटों में से 7 पर कांग्रेस की जीत तय थी। लेकिन सिर्फ 3 सीटों पर संतोष करना पड़ा।
2 - सामान्य बिरादरी के वोटो पर पकड़ मजबूत नहीं रही
2020 विधानसभा चुनाव में सीटों के बंटवारों में कांग्रेस को कुल 9 सीटें मिली थी। इनमें 4 सीटों पर नेताओं के बेटों को टिकट दिया गया।
इनमें 3 तो ऐसे थे। जो कई बार पाला बदल चुके थे। अंशुल अभिजीत जो मीरा कुमार के बेटे हैं। वह पटना साहिब से चुनाव लड़े। सनी हजारी को समस्तीपुर से टिकट मिला। उनके पिता जदयू सरकार में मंत्री थे। तीसरा अखिलेश ने खुद अपने बेटे को चुनाव लड़वाया। इनमें सभी नेताओं के बेटे चुनाव हार गए। तारिक अनवर को कटिहार से टिकट मिला था। लेकिन उन्होंने कांग्रेस छोड़ शरद पवार के साथ एनसीपी बना ली थी। टिकट बंटवारे में अखिलेश प्रसाद सिंह पूरी तरीके से फेल रहे। इसके अलावा सामान्य बिरादरी में भूमिहार और ब्राह्मणों का वोट भी कांग्रेस के पाले में नहीं कर पाए।
3 - लालू प्रसाद यादव से बढ़ती नजदीकियां भारी पड़ गई
अखिलेश प्रसाद सिंह ने कांग्रेस मुख्यालय में श्री कृष्ण जयंती का आयोजन किया था। इसमें उन्होंने राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव को बतौर मुख्य अतिथि बुलाया था। उस दौरान लालू प्रसाद यादव ने मंच से कहा था कि पहली बार अखिलेश प्रसाद सिंह के लिए मैंने ही जेल से फोन कर सोनिया गांधी से पैरवी की थी। अखिलेश प्रसाद सिंह की लालू से नजदीकियां काफी ज्यादा रही। पार्टी के अंदर अंदरूनी कलह की भी खबरें सामने आई। कहीं कांग्रेसी नेताओं का यह भी कहना था कि अखिलेश का लालू से करीबी नाता पार्टी को प्रदेश में मजबूत नहीं होने दे रहा है। लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव ने खुद की पार्टी का विलय कांग्रेस में किया। लेकिन कांग्रेस पप्पू यादव की मनचाही जगह पूर्णिया से टिकट नहीं दे पाई। जिसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ा। पप्पू यादव निर्दलीय इस सीट से चुनाव जीत गए।
4 - संगठन के लोगों को साथ नहीं कर पाए
अखिलेश प्रसाद सिंह को प्रदेश अध्यक्ष के पद से हटाए जाने में एक और बड़ी वजह यह भी रही। उन्हें ऐसे समय यह पद दिया गया। जब वह लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तैयारी मजबूती के साथ कर सकते थे। लेकिन उसके बावजूद पार्टी में टूट पड़ गई। दो विधायकों ने पार्टी का साथ छोड़ दिया। अखिलेश प्रसाद बिहार कांग्रेस कमेटी तक का गठन नहीं कर पाए। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ने बीजेपी ज्वाइन कर ली। इसके अलावा कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता असित नाथ तिवारी ने बीजेपी ज्वाइन करना सही समझा।
5 - जमीनी स्तर पर काफी कमजोर दिखाई दिए
अखिलेश प्रसाद सिंह दो बार राज्यसभा गए। लेकिन लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा। बेटे को पिछली बार भी चुनाव नहीं जितवा पाए और इस बार भी उसे हार मिली। उनसे नेताओं कार्यकर्ताओं को मिलने में भी कठिनाई होती थी। कई कार्यकर्ताओं के अंदर काफी ज्यादा नाराजगी थी। वह कई सदनों के सदस्य रह चुके हैं। लेकिन उसके बावजूद जमीनी स्तर पर काफी कमजोर नजर आए। यही कुछ वजह रही जिसकी वजह से कांग्रेस ने उनसे कांग्रेस अध्यक्ष पद छीन लिया।