नियमों के तहत कौन लोग नहीं बना सकते मैरिज सर्टिफिकेट? जानें ये अहम नियम

Marriage Certificate: मैरिज सर्टिफिकेट एक कानूनी दस्तावेज है जो यह प्रमाणित करता है कि दो व्यक्ति वैधानिक रूप से एक-दूसरे के जीवनसाथी हैं। यह दस्तावेज़ विवाह के बाद कई कानूनी और प्रशासनिक प्रक्रियाओं के लिए जरूरी होता है, जैसे कि संपत्ति अधिकार, वसीयत, नाम बदलवाने की प्रक्रिया, पासपोर्ट, और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ उठाना। हालांकि, कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जब किसी व्यक्ति का मैरिज सर्टिफिकेट जारी नहीं किया जा सकता है। यह नियम और शर्तें सरकारी और कानूनी व्यवस्थाओं पर आधारित होती हैं।
न्यायिक उम्र से कम उम्र वाले जोड़े
भारत में विवाह की न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित है, जो लड़कों के लिए 21 वर्ष और लड़कियों के लिए 18 वर्ष है। अगर कोई लड़का या लड़की इन आयु सीमाओं से कम उम्र में विवाह करता है, तो उस शादी का मैरिज सर्टिफिकेट नहीं जारी किया जा सकता। यह कानून इस बात को सुनिश्चित करने के लिए है कि विवाह दोनों पक्षों की सहमति और समझदारी से हो।
एक व्यक्ति के पहले से वैध विवाह का होना
अगर कोई व्यक्ति पहले से शादीशुदा है और उसने तलाक नहीं लिया है या वैध रूप से उसके पूर्व जीवनसाथी से कानूनी रूप से अलग नहीं हुआ है, तो उस व्यक्ति के लिए दूसरी शादी का मैरिज सर्टिफिकेट बनवाना कानूनी रूप से गलत होगा। भारतीय दंड संहिता के तहत, यह एक प्रकार के अपराध (Bigamy) के अंतर्गत आता है। ऐसे मामले में, अदालत से तलाक या वैध रूप से अलगाव की प्रक्रिया पूरी किए बिना दूसरा विवाह करना गैरकानूनी माना जाएगा।
जबरदस्ती या बिना सहमति के विवाह
अगर विवाह किसी एक पक्ष की सहमति के बिना किया गया हो या इसमें किसी तरह का दबाव डाला गया हो (जैसे कि बाल विवाह, यौन उत्पीड़न, आदि), तो ऐसी स्थिति में शादी का मैरिज सर्टिफिकेट जारी नहीं किया जा सकता। भारतीय संविधान और विभिन्न कानूनों में सहमति और स्वच्छंदता की अहमियत दी गई है। बिना सहमति के किए गए विवाहों को कानूनी तौर पर अवैध माना जाता है।
एक ही लिंग के लोग (समलैंगिक विवाह)
भारत में, भारतीय दंड संहिता और नागरिक कानूनों के तहत, समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से मान्यता नहीं दी जाती है। हालांकि, 2018 में भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध नहीं माना, लेकिन समलैंगिक विवाह के लिए कोई कानूनी प्रावधान अभी भी नहीं है। इसलिए, समलैंगिक जोड़ों के लिए विवाह प्रमाणपत्र जारी नहीं किया जाता।
मूल पहचान दस्तावेजों का अभाव
विवाह के रजिस्ट्रेशन के लिए दोनों पक्षों को कुछ मूल पहचान दस्तावेजों जैसे आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर आईडी, पासपोर्ट आदि की आवश्यकता होती है। अगर किसी व्यक्ति के पास इन दस्तावेजों का अभाव है या वह दस्तावेज सही तरीके से प्रस्तुत नहीं कर सकता, तो उसका विवाह रजिस्टर और मैरिज सर्टिफिकेट नहीं जारी किया जा सकता है।
गलत या असत्य जानकारी प्रदान करना
अगर विवाह के दौरान कोई व्यक्ति गलत जानकारी देता है या तथ्य छुपाता है, तो विवाह रजिस्टर करने की प्रक्रिया में परेशानी आ सकती है। यदि किसी व्यक्ति के द्वारा जन्मतिथि, पहचान, या शादी की तारीख में छेड़छाड़ की जाती है, तो यह कानून का उल्लंघन होगा। ऐसी स्थिति में विवाह रजिस्ट्रेशन रद्द किया जा सकता है और मैरिज सर्टिफिकेट नहीं जारी किया जा सकता।
अशुद्ध और अधूरा विवाह प्रक्रिया
विवाह का रजिस्ट्रेशन तभी होता है जब पूरी प्रक्रिया कानून के अनुसार पूरी की जाती है। अगर विवाह की प्रक्रिया में कोई भी कमी या गड़बड़ी होती है, जैसे कि रजिस्ट्रेशन फॉर्म का गलत तरीके से भरा जाना या सही प्रमाणपत्रों का अभाव, तो ऐसे मामलों में भी मैरिज सर्टिफिकेट नहीं बन सकता। यह सुनिश्चित किया जाता है कि विवाह प्रक्रिया पूरी तरह से वैध और सही हो।
धार्मिक और पारंपरिक विवाहों का रजिस्ट्रेशन न कराना
कुछ लोग धार्मिक या पारंपरिक रूप से शादी करते हैं, लेकिन वैधानिक रूप से उसका रजिस्ट्रेशन नहीं कराते। भारतीय विवाह अधिनियम के तहत, विवाह की कानूनी वैधता तभी होती है जब उसे सरकारी स्तर पर रजिस्टर किया जाए। अगर यह रजिस्ट्रेशन नहीं किया गया है, तो उस विवाह का कोई वैधानिक अस्तित्व नहीं होता, और उस पर मैरिज सर्टिफिकेट जारी नहीं किया जा सकता।
मैरिज सर्टिफिकेट एक महत्वपूर्ण कानूनी दस्तावेज है, जो यह प्रमाणित करता है कि दो लोग वैधानिक रूप से एक-दूसरे के जीवनसाथी हैं। हालांकि, कुछ स्थितियों में यह सर्टिफिकेट नहीं जारी किया जा सकता, जैसे कि जब विवाह आयु सीमा से कम है, या विवाह में किसी तरह की अवैधता है। ब्याह रचाने से पहले इन नियमों को जानना और समझना महत्वपूर्ण है, ताकि बाद में किसी भी कानूनी परेशानी का सामना न करना पड़े।