तलाक के बाद मुस्लिम महिलाओं को मिलेगा गुजारा भत्ता? सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

Muslim Alimony Rules: मुस्लिम महिलाएं भी तलाक के बाद अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता यानी Maintenance ले सकती है। भारतीय कानून के तहत किसी भी धर्म की महिला को यह अधिकार प्राप्त है कि अगर वह आर्थिक रूप से असहाय है और उसका पति उसे छोड़ देता है या तलाक दे देता है, तो वह उससे भरण-पोषण की मांग कर सकती है। खास बात ये है कि ये नियम सिर्फ इद्दत (तलाक के बाद की अवधि) तक ही सीमित नहीं है, बल्कि कई बार यह उससे आगे भी लागू होता है।
किस कानून के तहत मिलता है भत्ता?
भारत में CrPC की धारा 125 के तहत तलाकशुदा महिलाओं को गुजारा भत्ता पाने का हक है। ये कानून धर्म, जाति या पंथ नहीं देखता। इसका मतलब है कि चाहे महिला हिंदू हो, मुस्लिम, ईसाई या किसी भी धर्म की – अगर वह तलाक के बाद खुद का खर्च नहीं उठा सकती तो वह अपने पूर्व पति से खर्च की मांग कर सकती है
मुस्लिम महिलाओं के लिए अलग कानून भी है
हालांकि मुस्लिम महिलाओं के लिए मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 1986 भी बना है। इस कानून के तहत पति को तलाक के बाद इद्दत की अवधि (लगभग 3 महीने) तक पत्नी का खर्च देना होता है। लेकिन अगर महिला इद्दत के बाद भी असहाय रहती है, तो वह CrPC की धारा 125 के तहत भी केस कर सकती है।
कोर्ट के फैसले क्या कहते हैं?
भारत के कई हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने ये स्पष्ट किया है कि मुस्लिम महिला तलाक के बाद भी गुजारा भत्ता पाने की हकदार है:
1. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को सिर्फ इद्दत तक नहीं, बल्कि लंबे समय तक भी गुजारा भत्ता मिल सकता है।
2. सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2024 में साफ कहा कि CrPC की धारा 125 सभी धर्मों की महिलाओं पर लागू होती है, और मुस्लिम महिलाएं भी इसका लाभ ले सकती हैं।
कब नहीं मिलेगा गुजारा भत्ता?
कुछ मामलों में महिला को गुजारा भत्ता नहीं मिलता:
1. अगर महिला ने पुनर्विवाह (दोबारा शादी) कर ली हो।
2. अगर वह खुद अच्छी कमाई कर रही हो।
3. अगर पति यह साबित कर दे कि महिला ने झूठा केस किया है या जानबूझकर साथ छोड़ दिया।
अगर कोई मुस्लिम महिला तलाक के बाद आर्थिक रूप से कमजोर है, तो वह भी अन्य महिलाओं की तरह अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता ले सकती है। इसके लिए उसे कोर्ट में याचिका देनी होती है, और अदालत सबूतों के आधार पर फैसला लेती है। सरकार और कोर्ट का मकसद है कि तलाकशुदा महिलाओं को जीवन यापन के लिए बेसहारा न होना पड़े।