बेंगलुरु के ऑटो पर लिखा स्लोगन 'Virgin or not all girls' सोशल मीडिया पर क्यो हो रहा है वायरल
पतली हो या मोटी, काली हो या गोरी, वर्जिन हो या नहीं। हर लड़की सम्मान की हकदार है।" यह स्लोगन जब से सोशल मीडिया पर शेयर हुआ है, तब से इसे लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। कुछ यूजर्स ने इस स्लोगन की आलोचना की और कहा कि इसमें महिलाओं के बारे में पहले से ही बनी धारणाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। एक यूजर ने टिप्पणी की, "मुझे यह कहना पड़ रहा है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह रेडिकल फेमिनिज्म है।" जबकि एक अन्य यूजर ने चुटकी ली, "यह तो बिल्कुल भी रेडिकल नहीं है।"
बेंगलुरु के एक ऑटो रिक्शा ड्राइवर ने अपने ऑटो पर लगे एक स्लोगन से सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया है। ऑटो के पीछे लिखे इस स्लोगन में महिलाओं के सम्मान के बारे में एक दमदार संदेश दिया गया है, जिसमें लिखा है: "पतली हो या मोटी, काली हो या गोरी, वर्जिन हो या नहीं। हर लड़की सम्मान की हकदार है।" यह स्लोगन जब से सोशल मीडिया पर शेयर हुआ है, तब से इसे लेकर एक नई बहस छिड़ गई है। इस स्लोगन को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। एक ओर जहां कुछ लोग इस संदेश की तारीफ कर रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर इसके शब्दों के चयन पर सवाल भी उठाए जा रहे हैं।
इस स्लोगन को सबसे पहले X (Twitter) पर शेयर किया गया, जिसके साथ कैप्शन लिखा था: "बेंगलुरु की सड़कों पर कुछ 'रेडिकल फेमिनिज्म'।" पोस्ट के सामने आने के बाद से अब तक इसे 88,000 से अधिक बार देखा जा चुका है, और इस पर सैकड़ों टिप्पणियां की जा चुकी हैं।
some radical feminism on the roads of bangalore pic.twitter.com/EtnLk75t3A
— retired sports fan (@kreepkroop) September 30, 2024
कुछ लोगों ने इस स्लोगन की जमकर तारीफ की। एक यूजर ने लिखा, "रिक्शा चालक तो बेंगलुरु के कई आईटी प्रोफेशनल्स से ज्यादा सभ्य हैं।" वहीं, एक अन्य ने कहा, "मुझे ये ऑटो पसंद आया। उम्मीद है लोग इस संदेश को गंभीरता से लें।"
हालांकि, दूसरी तरफ कुछ यूजर्स ने इस स्लोगन की आलोचना की और कहा कि इसमें महिलाओं के बारे में पहले से ही बनी धारणाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। एक यूजर ने टिप्पणी की, "मुझे यह कहना पड़ रहा है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि यह रेडिकल फेमिनिज्म है।" जबकि एक अन्य यूजर ने चुटकी ली, "यह तो बिल्कुल भी रेडिकल नहीं है।"
एक और प्रतिक्रिया में कहा गया, "सम्मान जैसे शब्द को मानो आखिरी में जोड़ दिया गया हो, जो कि आज के फेमिनिज्म की असली तस्वीर दिखाता है।" इस तरह की प्रतिक्रियाओं से यह साफ होता है कि इस स्लोगन को लोगों की मिली जुली प्रतिक्रिया मिली है।
इस स्लोगन को लेकर बहस का मुद्दा अब यह बन गया है कि क्या यह संदेश सही तरह से महिलाओं के प्रति सम्मान को व्यक्त करता है या नहीं। आलोचकों का कहना है कि स्लोगन का वर्जिनिटी को लेकर किया गया संदर्भ उन सामाजिक धारणाओं को और पुख्ता कर रहा है जो पहले से ही महिलाओं के लिए असमानता और भेदभाव का कारण बनती हैं। उनका मानना है कि इस तरह के संदेशों में ध्यान देने की जरूरत है कि वे किसी भी रूप में महिलाओं को वस्तु की तरह न दिखाए।
जहां एक तरह बेंगलुरु की सड़कों पर तेजी से यह स्लोगन फैल रहा है तो वहीं, इस स्लोगन के सामने आने के बाद बेंगलुरु में एक और घटना ने सोशल मीडिया पर हलचल मचा दी। दरअसल एक बुजुर्ग महिला ने योग प्रशिक्षक और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर तन्नी भट्टाचार्जी को उनके शॉर्ट्स पहनने पर सार्वजनिक रूप से फटकार लगाई। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और इस पर भी लोगों के विचार अलग अलग सामने आ रहे हैं।
तन्नी ने इस घटना के बारे में कहा, "आपको क्या लगता है समस्या क्या है? मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या हो रहा है।" वीडियो में बुजुर्ग महिला का यह कहना था कि लड़कियों को पारंपरिक कपड़े पहनने चाहिए, जिससे इस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर एक बार फिर से बहस छिड़ गई।
अब बेंगलुरु के ऑटो रिक्शा पर लिखा यह स्लोगन और बुजुर्ग महिला का विरोध दोनों ही समाज में महिलाओं के प्रति अलग-अलग नजरिए रखते हैं। एक तरफ जहां एक सामान्य ऑटो ड्राइवर महिलाओं के सम्मान की बात कर रहा है, वहीं दूसरी ओर समाज के एक हिस्से में अब भी पुरानी सोच और धारणाएं मजबूत हैं।
सोशल मीडिया पर इन घटनाओं ने एक बार फिर से यह साबित किया है कि समाज में महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण को बदलने की जरूरत है। चाहे वह स्लोगन के जरिए हो या फिर व्यक्तिगत अनुभवों के माध्यम से।