क्या डोनाल्ड ट्रंप अपनी मनमर्जी से टैरिफ लगा सकते हैं? जानिए इसका प्रभाव!
डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ युद्ध ने अमेरिका की व्यापारिक नीति में अहम बदलाव किए। ट्रंप के टैरिफ के कारण अमेरिका, चीन, कनाडा, और मेक्सिको जैसे देशों के साथ व्यापारिक तनाव बढ़ा। लेकिन क्या आप जानते हैं टैरिफ क्या होता है, ट्रंप ने किन देशों पर टैरिफ लगाए, और इसका वैश्विक व्यापार पर क्या असर पड़ा।
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जब 2017 में डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने दुनिया के व्यापारिक समीकरणों को अपनी नीतियों से हिला दिया। ट्रंप के नेतृत्व में, अमेरिका ने एक के बाद एक व्यापारिक फैसले लिए, जिनका असर न केवल अमेरिका पर, बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ा। इनमें से सबसे चर्चित और विवादित कदम था टैरिफ युद्ध (Tariff War) की शुरुआत। इस ब्लॉग में हम समझेंगे कि डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ युद्ध क्यों शुरू किया, इसके परिणाम क्या रहे, और यह दुनिया के व्यापारिक समीकरण को किस तरह से प्रभावित करता है।
टैरिफ क्या होता है?
सबसे पहले, हमें यह समझना होगा कि टैरिफ (Tariff) क्या होता है। टैरिफ, दरअसल वह शुल्क है जिसे एक देश अपने द्वारा आयात किए गए सामान पर अन्य देशों से लेता है। यह शुल्क सरकारों को आय का एक स्रोत प्रदान करता है, और इसका उद्देश्य घरेलू उद्योगों की सुरक्षा करना भी हो सकता है। जब कोई देश अपनी सीमा में बाहर से आने वाले सामान पर उच्च टैरिफ लागू करता है, तो वह उस सामान को महंगा बना देता है, ताकि उपभोक्ता घरेलू उत्पादों की ओर आकर्षित हो सकें।
डोनाल्ड ट्रंप और टैरिफ युद्ध की शुरुआत
अब जब ट्रंप ने अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ ली, तो उनका पहला बड़ा कदम व्यापारिक असंतुलन को ठीक करना है, और इसी को लेकर उन्होंने दावा किया कि अमेरिका का व्यापारिक घाटा बहुत बढ़ गया है, खासकर चीन, मेक्सिको और कनाडा के साथ। उनका मानना था कि अमेरिका इन देशों से बहुत अधिक सामान आयात कर रहा है, और इसके बदले उन्हें उतनी समान मूल्य की चीजें नहीं मिल रही। इसका सबसे बड़ा उदाहरण था चीन के साथ व्यापार घाटा। ट्रंप ने चीन पर आरोप लगाया कि वह अपने व्यापार में अमेरिका के खिलाफ धोखाधड़ी कर रहा है। इसी कारण उन्होंने चीन से आयात होने वाली कई वस्तुओं पर भारी टैरिफ लगाए।
ट्रंप ने सबसे पहले कनाडा और मेक्सिको से आयात होने वाली स्टील और एल्युमिनियम पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने का ऐलान किया। इसके बाद, चीन से आयात होने वाली चीजों पर भी 10 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाया गया। ट्रंप का मानना था कि इस कदम से अमेरिकी उत्पादकों को फायदा होगा और उनका उत्पादन बढ़ेगा। हालांकि, इस फैसले का असर उल्टा पड़ा। कनाडा और मेक्सिको ने जवाबी कार्रवाई की और अमेरिका से आयात होने वाली कई चीजों पर टैरिफ बढ़ा दिए। इसका उदाहरण था मेक्सिको ने अमेरिकी सोया बीन और अन्य कृषि उत्पादों पर टैरिफ बढ़ा दिए थे। वहीं, चीन ने भी अमेरिकी उत्पादों पर प्रतिशोधी टैरिफ लगाने की घोषणा की, और व्यापारिक विवाद बढ़ने लगा।
क्या ट्रंप अपनी मनमर्जी से टैरिफ लगा सकते हैं?
अब सवाल यह उठता है कि क्या डोनाल्ड ट्रंप अपनी मनमर्जी से किसी भी देश पर टैरिफ लगा सकते हैं? इसका उत्तर थोड़ा जटिल है। जब तक किसी देश के व्यापारिक फैसले अंतरराष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन नहीं करते, तब तक वह अपनी नीति को लागू कर सकता है। लेकिन, अगर यह निर्णय विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों के खिलाफ जाता है, तो WTO हस्तक्षेप कर सकता है।
डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के खिलाफ टैरिफ बढ़ाने के बाद कई बार यह बयान दिया था कि वह चीन को सख्त सजा देना चाहते हैं, ताकि चीन अपने व्यापारिक प्रथाओं में सुधार करें। हालांकि, चीन ने अपने वकीलों के माध्यम से WTO में यह मामला उठाया, और अंततः दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ।
WTO का हस्तक्षेप और ग्लोबल व्यापार नियम
विश्व व्यापार संगठन (WTO) का मुख्य उद्देश्य देशों के बीच व्यापारिक विवादों को सुलझाना है। अगर किसी देश का टैरिफ अंतरराष्ट्रीय व्यापार नियमों के खिलाफ है, तो WTO उस देश को उसके फैसले को बदलने के लिए कह सकता है। चीन ने, जैसा कि पहले बताया गया, WTO में अमेरिका के खिलाफ मुकदमा दायर किया था। इस मामले में WTO ने अमेरिका से अपनी टैरिफ नीति पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया।
क्या भारत भी प्रभावित हुआ?
भारत, जो अमेरिका का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है, क्या इसका असर भारत पर भी होगा, क्या भारत इस टैरिफ युद्ध से प्रभावित होगा। हालांकि ट्रंप ने सीधे तौर पर भारत पर टैरिफ नहीं लगाया, लेकिन उन्होंने संकेत दिए थे कि भारत के खिलाफ भी वह टैरिफ नीति लागू कर सकते हैं। इसका कारण यह था कि अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक असंतुलन था। ट्रंप का मानना था कि भारत अपने उत्पादों पर ऊंचे आयात शुल्क लगाता है, जबकि अमेरिका से आने वाले सामानों पर भारत कम शुल्क लगाता है। भारत ने भी जवाबी कार्रवाई की और अमेरिका के सामानों पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की योजना बनाई। हालांकि, दोनों देशों के बीच वार्ता के बाद कुछ मामलों में राहत भी मिली और दोनों देशों ने अपने-अपने टैरिफ विवादों को शांत करने के प्रयास किए।
टैरिफ युद्ध केवल अमेरिका और उसके व्यापारिक साझेदारों तक सीमित नहीं था। इसका वैश्विक असर भी पड़ा। सबसे पहले, टैरिफ युद्ध ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित किया। कई कंपनियों ने अपने उत्पादों की कीमतों को बढ़ा दिया, जिससे वैश्विक व्यापार में मंदी आई। दूसरे, वैश्विक निवेशकों ने अमेरिका और चीन के बीच तनाव को देखते हुए अपने निवेश को अन्य देशों में स्थानांतरित कर दिया, जिससे वैश्विक बाजार में अनिश्चितता का माहौल बन गया।
डोनाल्ड ट्रंप का टैरिफ युद्ध अमेरिका के लिए एक लाभकारी रणनीति हो सकता था, लेकिन इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ा। इससे यह साफ है कि व्यापारिक निर्णय केवल एक देश तक सीमित नहीं रहते, बल्कि उनका वैश्विक प्रभाव होता है। टैरिफ नीति ने न केवल अमेरिका के व्यापारिक साझेदारों को चुनौती दी, बल्कि वैश्विक व्यापारिक नियमों पर भी सवाल उठाए। यह समझने के लिए कि यह युद्ध कैसे समाप्त होगा, और इसके क्या परिणाम होंगे, हमें आने वाले समय का इंतजार करना होगा।