China America Relations : चीन को झटका देने के लिए तैयार डोनाल्ड ट्रंप ! लेकिन चीन दिखा रहा नरमी ?
डोनाल्ड ट्रंप के द्वारा राष्ट्रपति चुने के बाद कई देशों में खलबली मची हुई है। इन देशों में अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाने को लेकर चिंता सता रही है। इनमें चीन की हालत काफी चिंताजनक है। हालांकि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस बार ट्रंप के प्रति नरमी दिखाकर बिगड़े हुए रिश्ते को सुधारने की कोशिश में लगे हुए हैं।
डोनाल्ड ट्रंप के अमेरिका के दोबारा राष्ट्रपति चुने जाने के बाद कई देशों में उथल-पुथल मची हुई है। हालात ऐसे हो गए हैं कि सभी देश आपस में मिलकर ट्रंप से निपटने के लिए बैठकें कर रहे हैं। इन सभी देशों में सबसे ज्यादा नजर चीन पर है। जिसको लेकर कहा जा रहा है कि अमेरिका और चीन के बीच फिर से एक नया ट्रेड वॉर यानि व्यापार युद्ध छिड़ने जा रहा है। दरअसल ट्रंप जब पहली बार राष्ट्रपति चुने गए थे। तो उन्होंने टैरिफ लगाकर चीन को काफी बड़ा झटका दिया था। इस वजह से दोनों देशों के बीच रिश्ते खराब हुए थे। लेकिन इस बार ट्रंप के आने से चीन पहले से तैयार बैठा है। उसने खुद को मजबूत बनाने के लिए कई बड़े कदम उठाए हैं। अपनी तकनीक में आत्मनिर्भरता बढ़ाई है। इसके साथ खुद को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए अपने खजाने में खूब पैसा भी जमा कर रखा है। कई एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि चीन अमेरिका के कई सहयोगियों के बीच पैदा होने वाले दरार का फायदा भी उठाएगा। हालांकि शुरुआती दौर में वह समझौते कर इस युद्ध को रोकने की कोशिश करेगा। भारत और चीन के बीच भी रिश्ते अच्छी नहीं है। लेकिन हाल ही में दोनों देशों के रिश्तों में काफी सुधार देखने को मिला है। ऐसे में चीन भारत के सहारे टैरिफ से बचने की कोशिश करेगा।
चीन ट्रंप के पहले कार्यकाल जैसा रवैया नहीं अपनाएगा
चीन के शंघाई यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ झाओ मिंगहाओ का कहना है कि चीन ट्रंप के पहले कार्यकाल जैसा रवैया नहीं अपनाएगा। पिछली बार ट्रंप के टैरिफ लगाने पर चीन ने बहुत बड़ी प्रक्रिया दी थी। बीते गुरुवार को शी जिनपिंग ने ट्रंप को संदेश भेजा था। इस संदेश में जिनपिंग ने ट्रंप से सहयोग की अपील की थी।
ट्रंप के सामने चीन दिखा रहा नरमी
डोनाल्ड ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद चीन को व्यापार को लेकर काफी चिंता सता रही है। दरअसल टैरिफ मसले पर ट्रंप के पहले कार्यकाल में चीन के साथ रिश्ते बिगड़े थे। लेकिन इस बार चीन खुद से नरमी दिखा रहा है। वह हर एक तरीके से व्यापार के संबंधों को मजबूत करना चाह रहा है। चीन की एक न्यूज़ एजेंसी ने तो यहां तक कह दिया कि "ट्रंप बीजिंग के लिए अजनबी नहीं है"। बीजिंग संयम के साथ में ट्रंप के साथ बातचीत की कोशिश करेगा। हालांकि चीन की टेक कंपनियां अमेरिका के आयात पर काफी कम निर्भर है। लेकिन विशाल रियल एस्टेट और भारी कर्ज से जूझ रही चीन 2016 की तुलना में काफी कमजोर स्थिति में है। जानकारी के लिए बता दें कि साल 2016 में चीन का विकास दर 6.7 प्रतिशत थी। लेकिन अब 5 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
ट्रंप ने चीन के हालात को बद से बदतर बनाने का किया प्लान
डोनाल्ड ट्रंप ने चीन के साथ सबसे पसंदीदा व्यापारिक रिश्ते को खत्म करने और चीनी आयात पर 60% आयात बढ़ाने का वादा किया है। यह शुल्क पहले कार्यकाल से काफी ज्यादा है। वहीं चीन के शंघाई यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के विशेषज्ञ झाओ ने आकलन किया है कि ट्रंप ने चुनावी रैलियों में जिस टैरिफ का वादा किया था। उससे काफी कम रहेगा। अमेरिका में महंगाई बढ़ने की भी संभावना है। लेकिन दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक देश चीन के उत्पादकों में काफी डर है। आपको बता दें कि चीन हर साल अमेरिका को 400 अरब डॉलर का माल बेचता है। अमेरिकी द्वारा खरीदे जाने वाले पुर्जों का निर्यात अरबों डॉलर में होता है। चीन ग्लोबल व्यापार को हर तरीके से बढ़ावा देने के लिए कूटनीतिक प्रयास कर रहा है। अपने सहयोगियों के साथ मजबूत संबंध और दुश्मनों से रिश्ते सुधार रहा है। इस कड़ी में भारत पहला उदाहरण है।
भारत और जापान के साथ खत्म किया विवाद
चीन ने पिछले 4 सालों से भारत के साथ चल रहे सैन्य सीमा विवाद को खत्म कर दिया है। वही अगस्त में जापान के साथ फुकुशिमा परमाणु संयंत्र पर और रेडियोधर्मी पानी के रिसाव पर बीते 2 सालों से चले आ रहे विवाद को भी सुलझा लिया। चीन के प्रतिनिधि ने ऑस्ट्रेलिया का भी दौरा किया। चीन ग्लोबल साउथ के साथ संबंधों को मजबूत कर रहा है।
चीन अमेरिका के सहयोगियों के बीच दरार पैदा करेगा
चीन की एक नामी यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट ने कहा है कि चीन ब्रिटिश,ऑस्ट्रेलिया,जापान, यूरोपीय देशों तक अपनी पहुंच बनाए रखेगा। लेकिन अमेरिका और उत्तरी देशों के सहयोगियों के बीच दरार पैदा करने की कोशिश करेगा। यह चीन की एक खास रणनीति है। जानकारी के लिए बता दे कि ट्रंप ने पहले कार्यकाल में चिप निर्माता कंपनी SMIC सहित कई बड़ी कंपनियों पर बैन लगाए थे। अमेरिका में चीन की सबसे हाई टेक्नोलॉजी वाले निर्यात पर भी कड़ा प्रतिबंध था।