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कट्टरपंथियों के डर से चिन्मय कृष्ण दास के वकील अदालत से नदारद, आखिर कब मिलेगा चिन्मय कृष्ण दास को न्याय?

बांग्लादेश में इस्कॉन के पुजारी चिन्मय कृष्ण दास की जमानत याचिका पर सुनवाई कट्टरपंथियों के दबाव में टाल दी गई। वकीलों पर झूठे मुकदमे और हमले के कारण अदालत में कोई भी वकील पेश नहीं हुआ। यह मामला बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और न्याय प्रणाली पर गहराते संकट को उजागर करता है।
कट्टरपंथियों के डर से चिन्मय कृष्ण दास के वकील अदालत से नदारद, आखिर कब मिलेगा चिन्मय कृष्ण दास को न्याय?
बांग्लादेश में इस्कॉन के पुजारी चिन्मय कृष्ण दास की जमानत याचिका पर मंगलवार (3 दिसंबर 2024) को सुनवाई होनी थी, लेकिन मामले की गंभीरता और कट्टरपंथियों के डर के चलते कोई भी वकील अदालत में पेश नहीं हुआ। इस घटना ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और न्याय प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अदालत ने अब अगली सुनवाई 2 जनवरी 2025 को तय की है।
 जमानत याचिका पर सुनवाई क्यों टली?
चटगांव की अदालत में चिन्मय कृष्ण दास की जमानत याचिका सुनवाई के लिए सूचीबद्ध थी, लेकिन वकीलों के अदालत में पेश होने से इनकार करने के बाद यह मामला एक महीने के लिए स्थगित कर दिया गया। इस्लामी कट्टरपंथियों के डर और हिंसा की आशंका ने वकीलों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया।

इससे पहले, इस्कॉन ने दावा किया था कि चिन्मय कृष्ण दास का बचाव करने वाले एक वकील, रामेन रॉय, पर हमला कर उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया गया। वह इस वक्त आईसीयू में जिंदगी और मौत के बीच झूल रहे हैं। इस हमले के बाद अन्य वकीलों ने भी अपना नाम इस मामले से वापस ले लिया।
कट्टरपंथियों के दबाव में न्याय व्यवस्था
बांग्लादेश सम्मिलिता सनातनी जागरण जोत ने आरोप लगाया कि लगभग 70 हिंदू वकीलों को चिन्मय कृष्ण दास का बचाव करने से रोकने के लिए झूठे मुकदमों में फंसाया गया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, चटगांव के कोतवाली पुलिस स्टेशन में वकीलों के खिलाफ विस्फोटक अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया, ताकि वे जमानत याचिका की सुनवाई में हिस्सा न ले सकें। इस पूरे प्रकरण में एक सुनियोजित साजिश की बू आती है, जहां अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को न्याय से वंचित रखने की कोशिश की जा रही है।

वैसे आपको बता दें कि चिन्मय कृष्ण दास पर देशद्रोह के आरोप लगाए गए हैं। स्थानीय इस्लामी संगठनों ने उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की है, लेकिन इस मामले में कई सवाल उठते हैं, जैसे क्या वकीलों और बचाव पक्ष को निष्पक्ष रूप से अपनी बात रखने का मौका दिया जा रहा है? इस मुद्दे ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ध्यान खींचा है, जहां मानवाधिकार संगठनों ने बांग्लादेश सरकार की आलोचना की है।
इस्कॉन के प्रवक्ता का बयान
इस्कॉन कोलकाता के प्रवक्ता राधारमण दास ने सोशल मीडिया पर घटना की निंदा करते हुए वकील रामेन रॉय के लिए प्रार्थना की अपील की। उन्होंने बताया कि रामेन रॉय पर हमला इसलिए हुआ क्योंकि उन्होंने चिन्मय कृष्ण दास का बचाव करने की हिम्मत की थी। कट्टरपंथियों ने न केवल वकील के घर पर हमला किया, बल्कि उनके परिवार को भी धमकी दी। इन घटनाओं ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और उनके अधिकारों पर गंभीर संकट खड़ा कर दिया है।

यह मामला सिर्फ बांग्लादेश तक सीमित नहीं है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन और धार्मिक संस्थाएं इस मुद्दे को लेकर मुखर हो रही हैं। उन्होंने बांग्लादेश सरकार से मांग की है कि चिन्मय कृष्ण दास को निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार दिया जाए, वकीलों और बचाव पक्ष को सुरक्षा मुहैया कराई जाए, और इसके साथ ही  कट्टरपंथियों द्वारा फैलाए जा रहे डर को खत्म करने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।

यह घटना केवल एक पुजारी के खिलाफ साजिश नहीं है, बल्कि यह बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की आवाज दबाने की एक बड़ी समस्या का हिस्सा है। चिन्मय कृष्ण दास के केस ने इस बात को और उजागर किया है कि धार्मिक असहिष्णुता कैसे न्याय प्रक्रिया को प्रभावित कर रही है। बताते चले कि चिन्मय कृष्ण दास की जमानत याचिका पर अगली सुनवाई 2 जनवरी 2025 को होगी। इस दौरान वकीलों और उनके परिवारों की सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा रहेगा। बांग्लादेश सरकार के लिए यह मामला उसकी न्याय प्रणाली और अंतरराष्ट्रीय छवि को सुधारने का अवसर भी है।
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