हर दिन 2 बिलियन डॉलर की कमाई, टैरिफ के खेल से कैसे अमीर हो रहा अमेरिका?
ट्रंप के मुताबिक, चीन समेत 60 देशों पर भारी टैरिफ लगाने के बाद अमेरिका का खजाना भर रहा है, जबकि बाकी दुनिया के लिए ये नीति आर्थिक झटके जैसी है। चीन ने इसका तीखा विरोध करते हुए पलटवार भी किया है।

दुनिया की अर्थव्यवस्था के केंद्र में इन दिनों एक ही सवाल घूम रहा है क्या अमेरिका सच में टैरिफ से हर दिन अरबों डॉलर कमा रहा है? और अगर हां, तो इसका असर बाकी दुनिया पर क्या पड़ रहा है? इस पूरे मुद्दे के पीछे एक नाम है जो हर दिन सुर्खियों में रहता है, और वो है डोनाल्ड ट्रंप। अमेरिका राष्ट्रपति ने जब से टैरिफ पॉलिसी को आक्रामक तरीके से लागू किया है, तब से न सिर्फ चीन, बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में हलचल मची हुई है। ट्रंप ने खुद इस बात का दावा किया है कि अमेरिका को टैरिफ से रोजाना दो बिलियन डॉलर की कमाई हो रही है। एक ऐसी कमाई, जो किसी भी देश के बजट को हिला सकती है।
टैरिफ से पैसा कैसे कमा रहा है अमेरिका?
टैरिफ एक प्रकार का आयात शुल्क होता है, जो किसी विदेशी देश से आने वाले सामान पर लगाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य घरेलू उद्योग को सुरक्षा देना और विदेशी कंपनियों से मुकाबले में घरेलू कारोबार को बढ़ावा देना होता है। डोनाल्ड ट्रंप ने इस नीति को अपनी सरकार की आर्थिक रीढ़ बना दिया। उन्होंने दुनिया के 60 से अधिक देशों पर टैरिफ लगा दिए—कहीं 10%, कहीं 25%, और चीन पर तो सीधा 104% तक टैक्स लगा दिया गया। यह शुल्क सीधा अमेरिका के खजाने में जाता है। ट्रंप के मुताबिक, इस नीति से अमेरिका को हर दिन लगभग 2 बिलियन डॉलर, यानी करीब 17 हजार करोड़ रुपये की कमाई हो रही है।
ट्रंप: “ये विस्फोटक है, लेकिन ज़रूरी है”
व्हाइट हाउस में मंत्रियों और सांसदों के साथ चर्चा के दौरान ट्रंप ने कहा, “ये टैरिफ विस्फोटक हैं—लेकिन यह एक ज़रूरी विस्फोट है, जिससे अमेरिका के उद्योगों को मजबूती मिलेगी। उनका तर्क है कि अमेरिका लंबे समय से सस्ते विदेशी माल की वजह से अपने उद्योग खो चुका है। खासकर चीन, वियतनाम और अन्य एशियाई देशों ने सस्ते उत्पादों से अमेरिकी मार्केट को भर दिया है, जिससे अमेरिकी श्रमिक बेरोजगार हो रहे हैं। ऐसे में टैरिफ लगाकर अमेरिका एक बार फिर अपनी उत्पादन क्षमता और उद्योगों को खड़ा करना चाहता है।
चीन बना सबसे बड़ा निशाना
चीन के साथ अमेरिका की ट्रेड वॉर कोई नई बात नहीं है। लेकिन ट्रंप ने इस लड़ाई को एक नए स्तर पर पहुंचा दिया। 104% का टैक्स सीधे चीन से आयात होने वाले इलेक्ट्रॉनिक्स, मोबाइल, मशीनरी, स्टील और अन्य उत्पादों पर लागू कर दिया गया है।
जवाब में चीन ने भी 84% का जवाबी टैरिफ लगाकर अमेरिका को चेतावनी दी “हम अंत तक लड़ने के लिए तैयार हैं।” चीन के विदेश मंत्रालय ने ट्रंप की टैरिफ नीति को "वैश्विक आर्थिक स्थिरता पर हमला" बताया और कहा कि अमेरिका का ये कदम नियम आधारित वैश्विक व्यापार प्रणाली के खिलाफ है।
हालांकि ट्रंप ने जिन देशों ने अमेरिकी टैरिफ का विरोध नहीं किया, उन्हें 90 दिन की छूट देने का ऐलान किया। हालांकि इस दौरान भी उन देशों पर 10% का बेस टैरिफ जारी रहेगा। ट्रंप ने साफ किया है कि यह छूट स्थायी नहीं है और सभी देशों को अमेरिका के हितों को प्राथमिकता देनी होगी। व्हाइट हाउस के प्रवक्ता ने बताया “कई देश वर्षों से अमेरिकी श्रमिकों और उद्योगों की अनदेखी करते आ रहे हैं। अब ऐसा नहीं होगा। अमेरिका अब अपने लोगों की रक्षा करेगा।”
अमेरिका को कैसे मिल रहा है टैरिफ से फायदा?
1. सरकारी खजाने में सीधी कमाई
डोनाल्ड ट्रंप का दावा है कि अमेरिका को टैरिफ से रोज़ाना करीब 2 बिलियन डॉलर की कमाई हो रही है। यह सीधी आमदनी है, जो सरकार को मिलती है जब विदेशी कंपनियाँ अमेरिकी बाज़ार में अपने प्रोडक्ट बेचती हैं। इस तरह सरकारी खजाना तेजी से भर रहा है, जिससे बजट घाटे को कम किया जा सकता है।
2. घरेलू उद्योगों को बढ़ावा
टैरिफ के कारण विदेशी उत्पाद महंगे हो जाते हैं, जिससे अमेरिकी उपभोक्ता देश में बने सामान को तरजीह देने लगते हैं। इससे घरेलू उद्योगों को बढ़ावा मिलता है। मैन्युफैक्चरिंग, स्टील, टेक्सटाइल, और ऑटो सेक्टर जैसी इंडस्ट्री को नया जीवन मिलता है।
3. नई नौकरियों की संभावनाएं
घरेलू उत्पादन बढ़ने से कंपनियों को ज्यादा मज़दूरों और कर्मचारियों की जरूरत पड़ती है। इससे स्थानीय स्तर पर रोज़गार के नए अवसर पैदा होते हैं। यही ट्रंप की ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ नीति का मूल उद्देश्य भी था।
4. व्यापारिक वार्ताओं में दबाव बनाने की ताकत
टैरिफ को एक रणनीतिक हथियार की तरह भी इस्तेमाल किया जा रहा है। ट्रंप प्रशासन का मानना है कि टैरिफ के ज़रिए वे अन्य देशों को व्यापार समझौतों में झुकने पर मजबूर कर सकते हैं। चीन जैसे देशों के साथ जब भी बातचीत होती है, टैरिफ का दबाव अमेरिका की स्थिति को मजबूत करता है।
दुनिया को क्या भुगतना पड़ रहा है नुकसान?
1. निर्यात पर ब्रेक
टैरिफ लगने से अमेरिका को सामान बेचने वाले देशों की लागत बढ़ जाती है, जिससे उनके निर्यात में गिरावट आती है। चीन, भारत, वियतनाम, जर्मनी जैसे देशों के उद्योगों पर सीधा असर पड़ता है क्योंकि वे अपने माल को उतनी प्रतिस्पर्धी कीमत पर अमेरिका में नहीं बेच पाते।
2. कीमतों में बढ़ोतरी
टैरिफ दरअसल छुपा हुआ टैक्स होता है। जब विदेशी कंपनियों को ज्यादा शुल्क देना पड़ता है, तो वे उस लागत को उपभोक्ता पर डालती हैं। इससे अमेरिका में कीमतें बढ़ जाती हैं, और साथ ही बाकी देशों में भी उत्पाद महंगे हो जाते हैं। स्मार्टफोन, इलेक्ट्रॉनिक्स, घरेलू सामान—सब कुछ महंगा होता जा रहा है।
3. अमेरिकी बाजार से दूरी
कई देशों ने अब वैकल्पिक बाजार तलाशना शुरू कर दिया है, जिससे वे अमेरिका पर निर्भर न रहें। ये रुख वैश्विक व्यापार के लिए अस्थिरता पैदा कर रहा है और अमेरिकी उपभोक्ताओं के पास विकल्प कम हो रहे हैं।
4. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बाधित
दुनिया अब एक जुड़ी हुई अर्थव्यवस्था बन चुकी है। चीन से कच्चा माल अमेरिका में जाकर प्रोडक्ट बनता है, जो फिर यूरोप में बिकता है। टैरिफ इस पूरी ग्लोबल सप्लाई चेन को बाधित कर देता है। नतीजा यह होता है कि कंपनियों को नई जगह ढूंढनी पड़ती है, जिससे उत्पादन में देरी और लागत में बढ़ोतरी होती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका भले ही कमाई कर रहा हो, लेकिन इसका दीर्घकालिक असर वैश्विक अर्थव्यवस्था को धीमा कर सकता है। भारत समेत कई देश जो अमेरिका को निर्यात करते हैं, उन्हें अब अपने प्रोडक्ट्स को प्रतिस्पर्धी कीमतों पर बेचना मुश्किल हो जाएगा।
क्या यह रणनीति वाकई टिकाऊ है?
आलोचक ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी को अल्पकालिक राजनीतिक स्टंट बताते हैं। उनका मानना है कि इससे अमेरिकी उपभोक्ताओं को ही ज्यादा कीमतें चुकानी पड़ती हैं। अगर चीन से आने वाला एक स्मार्टफोन पहले 500 डॉलर में मिलता था, तो अब टैरिफ के बाद वही फोन 625 डॉलर या उससे ज्यादा में बिकेगा। यानी नुकसान सीधा अमेरिकी उपभोक्ता को। डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी एक जुआ है एक ऐसा दांव जो अमेरिका को रोजाना अरबों डॉलर की कमाई तो दिला रहा है, लेकिन साथ ही एक अंतरराष्ट्रीय व्यापार युद्ध को जन्म भी दे रहा है। इस नीति ने जहां अमेरिका की राजस्व आमदनी बढ़ाई है, वहीं दुनिया भर के उद्योगों और सरकारों को परेशान भी कर दिया है।
अब सवाल यह है कि यह रणनीति कितने समय तक चलेगी? क्या अमेरिका अपने घरेलू उद्योगों को वाकई इतना मजबूत बना पाएगा कि वह बिना आयात के टिक सके? या फिर यह सिर्फ एक अस्थायी राजनीतिक हथियार था जो ट्रंप को अंतरराष्ट्रीय मंच पर मजबूत दिखाने के लिए इस्तेमाल किया गया?