हार्वर्ड पर यहूदी-विरोधी होने का आरोप! क्या ट्रंप सरकार रोकेगी फंडिंग?
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी पर यहूदी विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने का आरोप लगा है, जिसके कारण ट्रंप प्रशासन उसकी 9 अरब डॉलर की सरकारी फंडिंग रोकने की तैयारी में है। यह विवाद 7 अक्टूबर 2023 को इजरायल और हमास के बीच हुए संघर्ष के बाद बढ़ा, जब हार्वर्ड समेत कई अमेरिकी यूनिवर्सिटीज़ में फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शनों के दौरान यहूदी विरोधी नारों की गूंज सुनाई दी।

हार्वर्ड यूनिवर्सिटी पर यहूदी विरोधी होने के आरोपों से अमेरिका में बवाल मच गया है। ट्रंप प्रशासन ने पहले ही कोलंबिया यूनिवर्सिटी की सरकारी फंडिंग में कटौती कर दी थी, और अब हार्वर्ड पर भी शिकंजा कसने की तैयारी है। अमेरिका सरकार का कहना है कि यूनिवर्सिटी कैंपस में एंटी-सेमिटिज्म (यहूदी विरोध) बढ़ता जा रहा है, खासकर 7 अक्टूबर 2023 के बाद, जब इजरायल और हमास के बीच युद्ध छिड़ा था। सवाल यह है कि क्या हार्वर्ड सच में यहूदी विरोधी है, या फिर यह राजनीति से प्रेरित आरोप है? आइए, इस पूरे विवाद को गहराई से समझते हैं।
हार्वर्ड को कितना नुकसान हो सकता है?
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के पास पहले से ही 53 अरब डॉलर की भारी-भरकम निधि (एंडोमेंट फंड) है, जो इसे अमेरिका की सबसे अमीर यूनिवर्सिटी बनाती है। लेकिन सरकार का 9 अरब डॉलर का ग्रांट रोकना उसके लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है। इससे हार्वर्ड की छवि पर भी बुरा असर पड़ सकता है और यह यूनिवर्सिटी प्रशासन के लिए बड़ा संकट खड़ा कर सकता है।
एंटी-सेमिटिज्म क्या है यह विवाद?
एंटी-सेमिटिज्म का अर्थ यहूदियों के प्रति नफरत और उनके खिलाफ भेदभाव से है। इसकी जड़ें ईसाई धर्म के शुरुआती दौर से जुड़ी हुई हैं, जब यहूदियों को प्रभु यीशु को सूली पर चढ़ाने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। यह धारणा इतनी मजबूत हो गई कि यूरोप में यहूदियों के प्रति घृणा बढ़ने लगी और उन्हें समाज से अलग-थलग कर दिया गया। मध्यकाल में यहूदियों पर तरह-तरह के अत्याचार किए गए और उन्हें कई यूरोपीय देशों से निष्कासित कर दिया गया।
14वीं सदी से लेकर 19वीं सदी तक यहूदियों को समाज में नीचा दिखाया जाता रहा। उनके व्यापारों को बंद किया गया, उन्हें राजनीति से दूर रखा गया और उनके खिलाफ हिंसक घटनाएं बढ़ती गईं। स्थिति तब और खराब हो गई जब हिटलर के नेतृत्व में नाजी जर्मनी ने यहूदियों के नरसंहार का अभियान शुरू किया, जिसे होलोकास्ट कहा जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यहूदी समुदाय ने इजरायल राष्ट्र की स्थापना की, जिसे अमेरिका ने समर्थन दिया। अमेरिका और इजरायल के संबंधों ने दुनिया की राजनीति को एक नया मोड़ दिया। अमेरिका ने इजरायल को एक मजबूत राष्ट्र बनाने में मदद की, लेकिन समय के साथ अमेरिका में यहूदी समुदाय की ताकत और प्रभाव बढ़ने लगा, जिससे कुछ अमेरिकियों के बीच असंतोष बढ़ गया। यहूदी समुदाय का प्रभाव मीडिया, वित्त, और राजनीति में बढ़ता गया, जिससे इसे 'ज्यूइश लॉबी' कहा जाने लगा।
अमेरिका में यहूदियों पर हमले
हालांकि अमेरिका को यहूदियों के लिए सबसे सुरक्षित देशों में से एक माना जाता है, लेकिन वहां भी यहूदी विरोधी घटनाओं में इजाफा हुआ है। एफबीआई के आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका में हर साल 600 से 1200 यहूदी विरोधी घटनाएं दर्ज होती हैं। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ जस्टिस के अनुसार, हर साल करीब 2000 यहूदियों पर शारीरिक हमले होते हैं। ये आंकड़े दिखाते हैं कि अमेरिका में भी यहूदी समुदाय को नफरत और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है।
ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि हार्वर्ड पर यहूदी विरोधी होने के आरोप क्यों लग रहे है? तो हम आपको बता दें कि हार्वर्ड को लंबे समय से डेमोक्रेटिक मूल्यों का गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में वहां कुछ विचारधाराओं का विशेष समर्थन और कुछ का विरोध देखा गया है। 7 अक्टूबर 2023 को हमास के इजरायल पर हमले के बाद से अमेरिका के कई विश्वविद्यालयों में फिलिस्तीन के समर्थन और इजरायल के विरोध में प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों में कुछ जगहों पर 'गैस द ज्यूज' (यहूदियों को गैस चैंबर में डालो) जैसी नफरत भरी बातें भी सुनाई दीं।
हार्वर्ड में यहूदियों के खिलाफ हमले की घटनाएं बढ़ने की रिपोर्ट्स सामने आई हैं। कई यहूदी छात्रों ने शिकायत की है कि उन्हें धमकाया जा रहा है और उनके खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है। ट्रंप प्रशासन का मानना है कि हार्वर्ड प्रशासन इस मामले में गंभीर नहीं है और यहूदी छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में नाकाम रहा है। यही कारण है कि हार्वर्ड को भी कोलंबिया यूनिवर्सिटी की तरह सरकारी फंडिंग कटौती का सामना करना पड़ सकता है।
क्या ट्रंप प्रशासन सच में कार्रवाई करेगा?
डोनाल्ड ट्रंप की यहूदियों और इजरायल के प्रति नीतियां हमेशा स्पष्ट रही हैं। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान इजरायल का खुलकर समर्थन किया और वहां अमेरिकी दूतावास को तेल अवीव से यरुशलम स्थानांतरित करने का बड़ा फैसला लिया। अब जब वह दोबारा राष्ट्रपति पद की दौड़ में हैं, तो उनके इस कदम को यहूदी समुदाय का समर्थन हासिल करने की रणनीति के रूप में भी देखा जा रहा है।
ट्रंप प्रशासन के इस कदम से हार्वर्ड और अन्य विश्वविद्यालयों में यहूदियों के प्रति बढ़ती नफरत को नियंत्रित करने का दबाव बनेगा, लेकिन यह भी देखना होगा कि क्या यह निर्णय राजनीति से प्रेरित है या वास्तव में यहूदी छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया कदम है।
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी पर यहूदी विरोधी होने के आरोपों से अमेरिका की राजनीति में हलचल मच गई है। एक तरफ ट्रंप प्रशासन इसे यहूदी समुदाय की सुरक्षा का मुद्दा बता रहा है, तो दूसरी तरफ आलोचकों का मानना है कि यह कदम राजनीतिक फायदे के लिए उठाया गया है। क्या हार्वर्ड सच में अपनी सरकारी फंडिंग खो देगा? क्या अमेरिका में यहूदियों के खिलाफ नफरत बढ़ रही है? इन सवालों का जवाब आने वाले समय में मिलेगा, लेकिन इतना जरूर है कि यह मुद्दा अमेरिका की राजनीति और शिक्षा व्यवस्था पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।