ईरान और इज़रायल की दुश्मनी कैसे पनपी, दशकों के दोस्त कैसे हुए एक दूसरे के ख़िलाफ़ ?
इन सब पर आज यकीन करना मुश्किल है। लेकिन इतिहास के पन्नों में ईरान और इजरायल के रिश्तों का ये सच दर्ज है। क्या हुआ कि आज इन दोनों मुल्कों ने एक दूसरे के खिलाफ ही हथियार उठा लिए? 30 साल की दोस्ती, 45 साल से चली आ रही लंबी दुश्मनी में कैसे बदल गई। जानने के लिए पूरा वीडियो देखिए।
7 अक्टूबर 2023 की ये तस्वीरें ख़ौफ़नाक हैं। जब हमास ने Israel के एजेंसियों को धोखा देकर इज़रायल पर हमला किया।आज इस हमले को ठीक एक साल पूरा हो चुका है ।7 अक्टबूर, 2023 को हमास ने इजरायल को वो जख्म दिया था। जो कभी नहीं भरेगा ।इसमें करीब 1200 लोगों की मौत हुई थी और 251 को हमास लड़ाके अगवा कर गाजा ले गए थे। हमले के तुरंत बाद ही इजरायली सेना ने हमास के खिलाफ हमले शुरू कर दिए थे और इस एक साल में हमास को तबाह कर दिया। हमले के एक साल पूरे होने पर इजरायली रक्षा बलों ने गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक और लेबनान में अपने अभियानों का डेटा सार्वजनिक किया है। अब तक गाजा पट्टी में आईडीएफ ने हमास और दूसरे गुटों के 17,000 लड़ाकों को मार गिराया गया है। आईडीएफ ने कहा है कि 7 अक्टूबर को भी इजरायल के अंदर 1,000 हमास लड़ाके मारे गए थे, जब इजरायली बलों ने हमले के बाद जवाबी कार्रवाई की थी। हमास की 4,700 सुरंगों का पता लगाया। और अभी भी ऑपरेशन जारी हैं। लेकिन हिज़्बुल्लाह हो हमास हो इन सबके पीछे ईरान है ये सबको पता है। ईरान ने अब सीधे तौर पर इज़रायल पर हमले शुरू किए और उसके बाद से ही इज़रायल ने ईरान को इस गलती की सज़ा देने की क़सम खा ली है। लेकिन क्या आपको पता है कि ईरान और इज़रायल भले ही आज एक दूसरे के कट्टर दुश्मन हो। एक दूसरे को मिटाने के लिए आतुर हों लेकिन एक वक़्त ऐसा भी था जब दोनों देशों के बीच भारी दोस्ती थी। एक वक्त ऐसा था जब इजरायल की दी हुई मिसाइलों से ईरान इराक से युद्ध लड़ रहा था। फिर ऐसा क्या हुआ कि दोनों देश एक दूसरे के दुश्मन बन गए।
इन सब पर आज यकीन करना मुश्किल है। लेकिन इतिहास के पन्नों में ईरान और इजरायल के रिश्तों का ये सच दर्ज है। क्या हुआ कि आज इन दोनों मुल्कों ने एक दूसरे के खिलाफ ही हथियार उठा लिए? 30 साल की दोस्ती, 45 साल से चली आ रही लंबी दुश्मनी में कैसे बदल गई। दरअसल, जो ईरान आज इजरायल को मुस्लिमों का दुश्मन बता रहा है वो ईरान इजरायल को मान्यता देने वाला दूसरा मुस्लिम देश था। जो ईरान आज इजरायल पर मिसाइल दाग रहा है। वही, इजरायल कभी उसे जंग के हथियार सप्लाई करता था। जो ईरान आज कह रहा कि यहूदी शैतान हैं। उसी ईरान में एक वक्त मिडिल ईस्ट की सबसे बड़ी यहूदी आबादी रहती थी। 1948 के पहले इजरायल का अस्तित्व ही नहीं था। ये पूरा इलाका फिलीस्तीन था। जिस पर कभी ऑटोमन साम्राज्य का राज था। 14 मई 1948 को इजरायल अस्तित्व में आया। संयुक्त राष्ट्र ने 1947 में फिलीस्तीन को अरब और यहूदी राज्य में बांटने का प्रस्ताव दिया। अरब नेताओं को ये प्रस्ताव मंजूर नहीं था। इसका विरोध करने वाले 13 मुस्लिम देशों में ईरान भी शामिल था। 1949 में इजरायल के बनने के बाद भी जब इजरायल को संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनाने के लिए वोटिंग हुई तब भी ईरान ने इसका विरोध किया था। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ईरान भले ही इजरायल का विरोध कर रहा था लेकिन जियोपॉलिटिकल और रणनीतिक फायदे के लिए दोनों देशों के बीच गुप्त संबंध बन गए। 1950 में ईरान ने विरोध का पर्दा हटा दिया। तुर्की के बाद ईरान दूसरा मुस्लिम देश बन गया जिसने इजरायल को मान्यता दी। लेकिन दोनों देशों के रिश्तों ने बड़ा मोड़ 1953 के बाद लिया है।
साल 1953 में ईरान में तख्तापलट हुआ और यहाँ मोहम्मद रजा शाह का राज स्थापित हुआ। इस दौरान दोनों देशों के बीच संबंधों ने भी नया मोड़ लिया। मोहम्मद रजा शाह अमेरिका और वेस्ट देशों के समर्थक थे। मिस्र और इराक जैसे देशों के बीच ईरान ने इजरायल की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया। असल में इस दोस्ती में इजरायल का भी फायदा था और ईरान का भी। इसके साथ ही अमेरिका के लिए भी ये दोस्ती बेहद अहम थी। उस दौर में ईरान और इजरायल दोनों को अमेरिका का समर्थन था। इजरायल को तेल देने पर अरब देशों ने प्रतिबंध लगा रखा था। इजरायल को इंडस्ट्री और सैन्य जरूरतों के लिए तेल की जरूरत थी। तब इजरायल अपनी जरूरत का 40 परसेंट तेल ईरान से लेता था। ईरान के तेल के बदले इजरायल उसे हथियार , टेक्नोलॉजी और अनाज की सप्लाई करता था। ईरान और इजरायल ने मिलकर प्रोजेक्ट फ्लावर शुरू किया। ये हाईटेक मिसाइल सिस्टम डेवलप करने का प्रोजेक्ट था। ईरान की सीक्रेट पुलिस SAVAK को 1957 में मोसाद ने ट्रेन किया। मिडिल ईस्ट के सारे इस्लामिक देशों के विरोध के बावजूद ईरान ने इजरायल के साथ हाथ मिलाया।
साल 1979 से पहले ईरान और इज़रायल की लंबी दोस्ती थी लेकिन इसके बाद ईरान-इजरायल रिश्तों में सबकुछ बदल गया। लेकिन एक दम से नहीं। क्योंकि ये वो दौर था जब ईरान और इराक के बीच जंग के हालात तैयार हो रहे थे। ईरान और इजरायल दोनों को एक दूसरे की जरूरत थी क्योंकि दोनों का दुश्मन एक ही था। 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति की वजह से राजशाही का अंत हुआ और ईरान में सब कुछ बदल गया। इस्लामिक क्रांति के बाद ईरान ने इजरायल से सारे संबंधों को तोड़ दिया और उनके बीच दुश्मनी पनपने लगी। ईरान एक इस्लामिक देश बन गया और अयातुल्ला अली खामेनेई ईरान के सर्वोच्च नेता। 1980 से 1988 तक 8 साल ईरान और इराक के बीच जंग चलती रही। इस युद्ध में इजरायल ने ईरान को हथियारों की सप्लाई की थी। कहा जाता है कि युद्ध के दौरान हर साल इजरायल ने 500 मिलियन डॉलर के हथियार ईरान को दिए। इज़रायल को लगा की ईरान को ये रवैया पसंद आएगा। धार्मिक सत्ता को उखाड़ फेंकेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अयातुल्ला खामनेई इजरायल को फिलीस्तीन की जमीन पर कब्जा करने वाला मानते थे। अमेरिका को वो बड़ा शैतान और इजरायल को छोटा शैतान कहते थे। खामनेई ईरान को मुस्लिम राष्ट्रों के लीडर के तौर पर प्रोजेक्ट करना चाहते थे। इसमें इजरायल से दोस्ती अड़चन पैदा करती इसलिए उनकी सरकार ने इजरायल से सारे रिश्ते तोड़ दिए। सिर्फ यही नहीं ईरान ने इजरायल विरोधी फिलीस्तीन आंदोलन को सपोर्ट करना शुरू कर दिया। ईरान और इजरायल के बीच प्रॉक्सी वॉर का ये सिलसिला उसी दौर में शुरू हुआ। और दोस्ती दुश्मनी में तबदील हो गई। चार दशक से अधिक समय के बाद भी दोनों देशों के बीच संबंध दुरुस्त नहीं हो पाए हैं।