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पोप फ्रांसिस की अधूरी भारत यात्रा: मोदी के न्योते से पहले ही टूट गया सपना

88 वर्षीय पोप फ्रांसिस, जो वेटिकन के पहले लैटिन अमेरिकी पादरी थे, अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका निधन स्ट्रोक और हृदयगति रुकने से हुआ। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें दो बार भारत आने का निमंत्रण दिया था, जिसे पोप ने स्वीकार भी कर लिया था, लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। साल 2025 में उनकी भारत यात्रा की योजना थी, जो अब अधूरी रह गई।

पोप फ्रांसिस की अधूरी भारत यात्रा: मोदी के न्योते से पहले ही टूट गया सपना
एक यात्रा जो होनी थी, एक वादा जो पूरा नहीं हो सका और एक व्यक्तित्व जिसने दुनिया को करुणा, सेवा और भाईचारे की नई परिभाषा दी पोप फ्रांसिस अब हमारे बीच नहीं रहे. वेटिकन सिटी के पहले लैटिन अमेरिकी पादरी पोप फ्रांसिस का निधन 88 वर्ष की आयु में हो गया. भारत सरकार ने उनके सम्मान में तीन दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित कर यह साबित कर दिया कि भारत की भूमि, उनके आगमन की प्रतीक्षा कर रही थी जो अब एक अधूरी ख्वाहिश बनकर रह गई.

पोप फ्रांसिस का भारत से विशेष संबंध

भारत और वेटिकन के संबंधों का इतिहास बहुत पुराना है, लेकिन पोप फ्रांसिस के साथ यह रिश्ता और भी मानवीय और संवेदनशील रूप में सामने आया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 में वेटिकन सिटी में पोप फ्रांसिस से मुलाकात की थी, और उस मुलाकात में जो गर्मजोशी दिखी, उसने एक नई उम्मीद जगा दी थी उम्मीद पोप की भारत यात्रा की.

फिर 2024 में एक बार फिर से प्रधानमंत्री मोदी और पोप फ्रांसिस की मुलाकात हुई. इस बार भी भारत आने का औपचारिक निमंत्रण उन्हें दिया गया, जिसे उन्होंने हर्षपूर्वक स्वीकार किया. लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था.

क्या थी भारत यात्रा की योजना?

पिछले साल दिसंबर में केंद्रीय मंत्री जॉर्ज कुरियन वेटिकन सिटी के दौरे पर गए थे. उन्होंने इस यात्रा के बाद बताया था कि पोप फ्रांसिस की भारत यात्रा 2025 में संभव है. ये वही साल है, जब कैथोलिक चर्च ईसा मसीह के जन्म के 2000 वर्ष पूरे होने पर विशेष आयोजन की योजना बना रहा था.

यह यात्रा एक ऐतिहासिक क्षण बन सकती थी ना सिर्फ धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि भारत और वेटिकन के संबंधों को एक नई ऊंचाई देने के लिहाज़ से भी. लेकिन यह आयोजन अब स्मृतियों में ही रह गया है.

पोप की पूर्व भारत यात्राएं और उनका महत्व

पोप फ्रांसिस की भारत यात्रा की बात इसलिए भी महत्वपूर्ण थी, क्योंकि पोप की भारत यात्राएं बेहद दुर्लभ और ऐतिहासिक होती हैं. पोप जॉन पॉल द्वितीय ने भारत दो बार यात्रा की — पहली बार 1986 में जब वे कोलकाता में मदर टेरेसा से मिले और दूसरी बार 1999 में जब वे नई दिल्ली में एशियाई बिशपों की विशेष धर्मसभा में शामिल हुए. उससे पहले, पोप पॉल चतुर्थ भारत आने वाले पहले पोप थे. वे 1964 में इंटरनेशनल यूचरिस्टिक कांग्रेस में भाग लेने के लिए मुंबई आए थे. इन यात्राओं ने भारत में ईसाई समुदाय के लिए न सिर्फ एक नया उत्साह पैदा किया, बल्कि धर्मों के बीच संवाद को भी बढ़ावा दिया. यही कारण है कि पोप फ्रांसिस की संभावित यात्रा को लेकर ईसाई समाज में विशेष उम्मीदें थीं.

आपको बता दें कि पोप फ्रांसिस का निधन स्ट्रोक और हृदय गति रुकने से हुआ है. वेटिकन सिटी में अब सप्ताहभर का शोक कार्यक्रम शुरू हो चुका है, जिसमें पहले सेंट मार्टा चैपल में वेटिकन के अधिकारी उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि देंगे और फिर सेंट पीटर्स चर्च में आम जनता दर्शन कर सकेगी.

अंतिम इच्छा: सादगी और सेवा की पहचान

पोप फ्रांसिस ने हमेशा एक बात पर ज़ोर दिया कि चर्च सिर्फ एक संस्था नहीं, बल्कि सेवा और मानवता का प्रतीक है. यही सोच उनकी अंतिम इच्छा में भी झलकती है. सदियों से दिवंगत पोप्स को सेंट पीटर्स बैसिलिका या उसकी गुफाओं में दफनाया जाता रहा है. लेकिन पोप फ्रांसिस की इच्छा थी कि उन्हें वेटिकन के बाहर, सेंट मैरी मेजर बैसिलिका में दफनाया जाए जहां से उन्होंने पोंटिफ के रूप में अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू की थी. यह निर्णय ना केवल उनकी सादगी का प्रतीक है, बल्कि यह संदेश भी देता है कि एक पोप का पद शक्ति नहीं, सेवा का प्रतीक होना चाहिए.

भारत में तीन दिन का राजकीय शोक
पोप फ्रांसिस के निधन पर भारत सरकार ने 22 और 23 अप्रैल को शोक घोषित किया है. इसके अलावा, उनके अंतिम संस्कार के दिन भी राष्ट्रीय शोक रहेगा. इस दौरान राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा आधा झुका रहेगा और किसी भी प्रकार के सरकारी समारोह नहीं होंगे.

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