शेख हसीना का खुलासा, बांग्लादेश में नरसंहार से बचने के लिए छोड़ी सत्ता, यूनुस को बताया अल्पसंख्यकों पर हमले का मास्टरमाइंड
बांग्लादेश में 5 अगस्त 2024 को हुए तख्तापलट के बाद हालात बिगड़ते जा रहे हैं। देश में हिंदुओं, बौद्धों और ईसाइयों पर हमले बढ़ गए हैं। इस्कॉन के अध्यक्ष चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी ने हिंसा को और बढ़ावा दिया है। शेख हसीना ने इस्तीफा देकर बांग्लादेश छोड़ दिया और तख्तापलट से जुड़े चौंकाने वाले खुलासे किए हैं।
बांग्लादेश एक बार फिर संकट के दौर से गुजर रहा है। सत्ता से शेख हसीना का हटना और देश में हिंदुओं, बौद्धों और ईसाइयों पर हो रहे हमले चर्चा का मुख्य विषय बन गए हैं। बीते 5 अगस्त 2024 को हुए तख्तापलट के बाद से ही बांग्लादेश में अस्थिरता और हिंसा का माहौल है। शेख हसीना ने बांग्लादेश छोड़ भारत में शरण ले ली है और इस बीच उनका एक वर्चुअल संबोधन चर्चा में है।
न्यूयॉर्क में अवामी लीग के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए शेख हसीना ने अपने इस्तीफे और बांग्लादेश छोड़ने के पीछे का कारण बताया। उन्होंने कहा, "अगर मैं सत्ता में बनी रहती, तो देश नरसंहार की चपेट में आ जाता। हथियारबंद लोग मेरे आवास गणभवन तक पहुंच गए थे। मैंने सुरक्षाकर्मियों को फायरिंग करने से मना किया, क्योंकि मैं खूनखराबा नहीं चाहती थी।" हसीना ने स्पष्ट किया कि उन्हें सत्ता की लालसा नहीं है। उनका मकसद देश को स्थिरता देना था, लेकिन हालात ऐसे बन गए कि इस्तीफा देना ही एकमात्र विकल्प था। उन्होंने कहा कि आज बांग्लादेश में हिंदुओं, बौद्धों और ईसाइयों को निशाना बनाया जा रहा है। मंदिर, चर्च और इस्कॉन पर हमले हो रहे हैं।
हिंसा के मास्टरमाइंड मोहम्मद यूनुस
शेख हसीना ने हिंसा के पीछे नोबेल पुरस्कार विजेता और बैंकिंग विशेषज्ञ मोहम्मद यूनुस को मास्टरमाइंड बताया। उन्होंने कहा कि यूनुस और उनकी योजनाओं का मकसद देश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ माहौल बनाना है। उन्होंने दावा किया कि बीएनपी नेता खालिदा जिया और उनके बेटे तारिक रहमान इस साजिश में शामिल हैं। “मोहम्मद यूनुस ने अल्पसंख्यकों पर हमले करवाने के लिए एक ठोस योजना बनाई है। इसका मकसद सरकार को गिराना और बांग्लादेश को अस्थिर करना है।”
वैसे आपको बता दें कि इस पूरी कहानी में एक और नाम चर्चा का केंद्र बना है – इस्कॉन के चटगांव पुंडरीक धाम के अध्यक्ष चिन्मय कृष्ण दास। उनकी गिरफ्तारी के बाद से देश में हिंसा तेज हो गई। हिंदू समुदाय ने शांतिपूर्ण सभाएं कीं, लेकिन उन्हें चरमपंथी संगठनों के हमलों का सामना करना पड़ा। चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी के विरोध में हिंदू समाज के लोग सड़कों पर उतरे। BNP और जमात के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शनकारियों पर हमला कर दिया, जिसमें 50 से ज्यादा लोग घायल हुए। इसके बाद चरमपंथियों ने चटगांव में हिंदू समुदाय पर संगठित हमले किए, जिसमें मंदिर और इस्कॉन के धाम को भी निशाना बनाया गया।
बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की स्थिति और भविष्य
बांग्लादेश में हिंसा का यह दौर सवाल खड़ा करता है कि देश में अल्पसंख्यकों के लिए क्या कोई सुरक्षित स्थान बचा है? हिंदू, बौद्ध और ईसाई समुदाय पर हो रहे हमले केवल धार्मिक असहिष्णुता को नहीं दिखाते, बल्कि देश की न्याय व्यवस्था और राजनीतिक अस्थिरता को भी उजागर करते हैं। शेख हसीना का यह बयान कि "सत्ता में बनी रहती तो नरसंहार हो जाता," इस बात की ओर इशारा करता है कि बांग्लादेश किस हद तक कट्टरपंथी ताकतों की गिरफ्त में है। मोहम्मद यूनुस पर लगाए गए आरोप और चिन्मय प्रभु की गिरफ्तारी ने देश में अस्थिरता को और बढ़ा दिया है।
आज बांग्लादेश एक चौराहे पर खड़ा है। जहां एक ओर अल्पसंख्यकों पर हमले हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस मामले पर चुप है। क्या शेख हसीना की वापसी और मोहम्मद यूनुस जैसे लोगों पर कार्रवाई से हालात सुधरेंगे? या फिर बांग्लादेश एक और हिंसा और अस्थिरता के दौर में डूब जाएगा? यह सवाल बांग्लादेश की साख, उसकी न्याय प्रणाली और अल्पसंख्यकों के भविष्य को लेकर गंभीर चिंताओं को जन्म देता है। दुनिया अब इस देश के अगले कदम का इंतजार कर रही है।