ट्रम्प के टैरिफ के बाद भी Apple चीन से क्यों नहीं तोड़ रहा नाता, जवाब आपको चौंका देगा
Apple के CEO टिम कुक ने स्पष्ट किया कि Apple चीन को सस्ती मजदूरी के लिए नहीं, बल्कि उसकी अत्याधुनिक टूलिंग स्किल्स और टेक्निकल दक्षता के कारण चुनता है। यह बयान तब आया है जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर भारी टैरिफ लगाए हैं और अमेरिकी कंपनियों पर दबाव बढ़ा है कि वे मैन्युफैक्चरिंग चीन से हटाकर भारत जैसे देशों में शिफ्ट करें।

जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर वैश्विक व्यापार पर टैरिफ का हथौड़ा चलाया और चीन पर 125% तक आयात शुल्क लगा दिया, तो पूरी दुनिया की नज़रें दो सवालों पर टिक गईं—पहला, चीन और अमेरिका के बीच चल रही व्यापारिक जंग का अंत क्या होगा? और दूसरा, ऐसे माहौल में भी Apple जैसी दिग्गज टेक कंपनी चीन में ही अपने प्रोडक्ट क्यों बनवाती है?
इन दोनों सवालों का जवाब तब और रोचक हो गया जब एप्पल के CEO टिम कुक ने खुद सामने आकर दुनिया को बताया कि एप्पल चीन में अपने iPhones, MacBooks और अन्य डिवाइसेज़ क्यों बनवाता है। और सबसे चौंकाने वाली बात ये रही कि इसका कारण सस्ता श्रम नहीं, बल्कि "टूलिंग स्किल" है।
चीन सस्ती मजदूरी वाला देश नहीं है: टिम कुक
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'X' (पूर्व में ट्विटर) पर टिम कुक स्पष्ट शब्दों में कहा "लोगों को भ्रम है कि कंपनियां चीन जाती हैं क्योंकि वहाँ मजदूरी सस्ती है। लेकिन सच्चाई यह है कि चीन वर्षों पहले ही सस्ती मजदूरी वाला देश नहीं रहा।"
टिम कुक का यह बयान ट्रंप प्रशासन की उस सोच को सीधे चुनौती देता है, जिसमें मान लिया गया था कि अमेरिकी कंपनियां केवल लागत बचाने के लिए चीन में निर्माण करवाती हैं। कुक ने कहा कि एप्पल का चीन को चुनने का कारण "स्किल का घनत्व और गुणवत्ता" है। यानी वहां एक ही जगह पर बड़े पैमाने पर कुशल श्रमिक, उच्च तकनीकी दक्षता और अत्याधुनिक मैन्युफैक्चरिंग प्रोसेस उपलब्ध हैं।
आखिर क्या है 'Tooling Skills'है?
टिम कुक के अनुसार, Apple जैसे हाई-एंड प्रोडक्ट्स को बनाना केवल स्क्रू जोड़ना या बॉडी फिट करना नहीं होता, बल्कि यह एक 'टूलिंग आर्ट' है—जिसमें अत्यंत सूक्ष्म स्तर पर मशीनिंग, मटीरियल वर्क और इंजीनियरिंग का सम्मिलन होता है।
जैसे iPhone के कैमरा माड्यूल की अलाइनमेंट माइक्रोमीटर के भीतर होती है। MacBooks की बॉडी CNC मशीन्स से बनी होती है, जो नैनो-लेवल तक काम करती हैं। कुक ने कहा, "हम जिन उत्पादों का निर्माण करते हैं, उनके लिए जिस तरह की फिनिश और प्रेसिशन चाहिए, वह स्किल एक ही स्थान पर इतनी बड़ी संख्या में सिर्फ चीन में उपलब्ध है।"
ट्रंप का टैरिफ और Apple का संकट
डोनाल्ड ट्रंप के 47वें राष्ट्रपति बनते ही अमेरिका ने एक बार फिर वैश्विक सप्लाई चेन पर हमला किया। चीन से आने वाले टेक प्रोडक्ट्स पर 125% तक टैरिफ लगाने के बाद Apple जैसी कंपनियों पर दबाव बना कि वे चीन को छोड़कर निर्माण भारत, वियतनाम या अमेरिका में शिफ्ट करें।
लेकिन मामला उतना आसान नहीं है। टिम कुक ने बताया कि मैन्युफैक्चरिंग का माइग्रेशन महज एक निर्णय नहीं, बल्कि एक दशक लंबी प्रक्रिया होती है। चीन में एप्पल की साझेदार कंपनियों जैसे Foxconn, Pegatron और Luxshare ने हज़ारों करोड़ डॉलर की इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश किया है, जिसे रातों-रात हटाना संभव नहीं।
क्या Apple भारत आ रहा है?
Apple भारत को एक बड़ा बाजार और संभावित मैन्युफैक्चरिंग हब मानता है। Apple ने पिछले दो वर्षों में भारत में iPhone निर्माण को लेकर तेज़ी से कदम बढ़ाए हैं। भारत में Apple की साझेदारी Foxconn और Tata Electronics के साथ है और iPhone 15 सीरीज का आंशिक निर्माण चेन्नई के पास हो रहा है। लेकिन अभी भी चीन का विकल्प पूरी तरह बन पाना भारत के लिए एक लंबी दौड़ है।
टिम कुक ने चीन की तुलना में भारत के बारे में कहा "भारत में हमें भविष्य दिखता है, लेकिन वर्तमान में जो depth और scale चीन में है, वह अन्य किसी देश में फिलहाल नहीं है।"
अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध की आंच
इस पूरे विवाद के बीच टिम कुक का बयान उस वक्त आया है जब अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध फिर से चरम पर है। ट्रंप की नई टैरिफ नीति ने न केवल चीन को, बल्कि अमेरिकी कंपनियों को भी असमंजस में डाल दिया है। अमेरिका चाहता है कि कंपनियां चीन छोड़ें। चीन चाहता है कि वे वहीं रहें और निवेश बढ़ाएं। कंपनियां चाहती हैं कि स्थिरता हो ताकि वे अपना उत्पादन निर्बाध तरीके से कर सकें। Apple जैसी कंपनियां अब राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक व्यावहारिकता के बीच फंस गई हैं।
टिम कुक का बयान हमें यह समझाने के लिए काफी है कि व्यापारिक निर्णय केवल पैसे और राजनीति से नहीं, बल्कि दक्षता, व्यवस्था और गुणवत्ता से भी चलते हैं। एप्पल जैसी कंपनियों के लिए "मेक इन चाइना" अब सिर्फ लेबर का मामला नहीं, बल्कि एक इकोसिस्टम का नाम है। जहाँ ट्रंप प्रशासन इसे राष्ट्रवाद का मुद्दा बना रहा है, वहीं एप्पल जैसी कंपनियों के लिए यह क्वालिटी और डिलीवरी की विश्वसनीयता का विषय है।