इज़रायल का साथ क्यों दे रहा ये मुस्लिम देश, ईरान के हमलों को कर रहा नाकाम
इजरायल पर जब-जब भी ईरान ने हमला किया है, ये मुस्लिम देश ढाल बनकर खड़ा हो गया। ये सब तब है जब इस देश की ज़्यादातर आबादी मुस्लिम है।और इज़रायल के ख़िलाफ़ है। इसके बावजूद ये देश इज़रायल की हर हाल में मदद करता है जानिए इस वीडियो में
Iran हो हमास हो या हिज़्बुल्लाह इज़रायल ने अपना रुख़ साफ़ कर दिया है। कि वो इन सबको मिटा कर ही दम लेगा। इजरायल कह चुका है वो इस वक़्त सात फ़्रंट पर लड़ रहा है। और कोई उसकी मदद करे या नहीं वो अब रुकने वाला नहीं है। दूसरी तरफ़ ईरान के सुप्रीम लीडर खामेनेई। मुसलमानों को इज़रायल के ख़िलाफ़ साथ आने की अपील कर चुके हैं। लेकिन इस बीच एक मुस्लिम देश ऐसा भी है जो ईरान के ख़िलाफ़ जाकर इज़रायल की खुलकर मदद कर रह है। पिछले दिनों जब ईरान ने इज़रायल पर 200 बैलेस्टिक मिसाइलों से हमले किया। तो उस मुस्लिम देश ने अपने हवाई क्षेत्र में कई मिसाइलों मार गिराने का दावा भी किया था। इजरायल पर जब-जब भी ईरान ने हमला किया है, ये मुस्लिम देश ढाल बनकर खड़ा हो गया। ये सब तब है जब इस देश की ज़्यादातर आबादी मुस्लिम है। और इज़रायल के ख़िलाफ़ है। इसके बावजूद ये देश इज़रायल की हर हाल में मदद करता है।
जब आप नक्शा देखेंगे तो ईरान और इज़रायल के बीच एक देश आपको दिखेगा Jordan यही Jordan इजरायल के साथ खड़े होने का दावा करता है। कई मुस्लिम देशों से दुश्मनी लेकर ये इज़रायल की मदद करता है उसका समर्थन करता है। Jordan की बड़ी बात ये है कि ये अमेरिका का काफ़ी करीबी है और अमेरिकी सैन्य अड्डे की भी मेज़बानी करता है। जॉर्डन की आबादी 1.13 करोड़ है, जिसमें से ज़्यादातर सुन्नी मुस्लिम हैं। ये दक्षिण पश्चिम एशिया में अकाबा खाड़ी के दक्षिण में, सीरियाई मरुस्थल के दक्षिणी भाग का एक अरब देश है। जॉर्डन में किंग अब्दुल्ला द्वितीय का शासन है। वह फिलिस्तीनियों के अधिकारों की मुखर रूप से पैरवी भी करते हैं। ऐसे में पहली नजर में जॉर्डन का इजरायल का समर्थन या मदद करने का फैसला जोखिम भरा माना जा सकता है। इसके बावजूद जॉर्डन के लिए ऐसा करने की अलग मजबूरियां हैं। इसी साल अप्रैल में ईरानी मिसाइल हमले के दौरान जॉर्डन इकलौता मुस्लिम देश था, जिसने खुलकर अपनी एयरफोर्स को इजरायल की मदद के लिए भेजने की बात स्वीकार की थी। इसने इजरायल के लिए ईरान से भी दुश्मनी मोल ली थी। इज़रायल के ऊपर चौतरफा दबाव के बीच मुस्लिम देश जॉर्डन उसके लिए रक्षा कवच बना हुआ है।
जॉर्डन की मजबूरियां क्या हैं?
जॉर्डन की सीमा इजरायल से सटी हुई है। वह सऊदी अरब, सीरिया और ईरान का भी पड़ोसी है। ऐसे में जब भी ईरान मिसाइल हमला करता है, तो वे सभी जॉर्डन के हवाई क्षेत्र से होकर गुजरती हैं। चूंकि जॉर्डन पर अमेरिका का बहुत अधिक प्रभाव है और अमेरिका ने इस देश में बड़े पैमाने पर सैनिकों, रडार, एंटी एयरक्राफ्ट और मिसाइल डिफेंस सिस्टम को तैनात कर रखा है। ऐसे में जब भी ईरान की मिसाइलें जॉर्डन के एयरस्पेस से गुजरती हैं तो उसे अमेरिकी एयर डिफेंस सिस्टम मार गिराते हैं। जॉर्डन का कहना होता है कि ये मिसाइलें उसके देश की संप्रभुता का उल्लंघन करती हैं और नागरिकों के लिए भी खतरा हो सकती हैं। ऐसे में उन्हें मार गिराना ही एकमात्र विकल्प होता है। दरअसल , जॉर्डन अमेरिका का एक प्रमुख गैर-नाटो सहयोगी है। लेकिन, सहयोगी होने का मतलब यह नहीं है कि वह अमेरिकी सैन्य प्रयासों का समर्थन करता है। जॉर्डन और अमेरिका ने 2021 की शुरुआत में एक रक्षा सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन यह समझौता अमेरिकी सैन्य कर्मियों और ठेकेदारों के लिए प्रशिक्षण, युद्धाभ्यास के लिए जॉर्डन की सुविधाओं के लिए सीमित है। यह जॉर्डन को अमेरिका की ओर से कोई सैन्य अभियान चलाने के लिए दबाव नहीं डालता है। ईरानी ड्रोन और मिसाइलों को निशाना बनाने और मार गिराने में इजरायल, संयुक्त राज्य अमेरिका, यू.के. और फ्रांस के साथ शामिल होने के जॉर्डन के फैसला लेने कई और कारण भी थे।कुछ ड्रोन, या बैलिस्टिक और क्रूज मिसाइलें इजरायल के बजाय जॉर्डन के क्षेत्र में गिर सकती थीं। जॉर्डन ने तर्क दिया कि वह इजरायल की रक्षा का समर्थन करने के बजाय अपने क्षेत्र को एक गलत तरीके से दागे गए ईरानी मिसाइलों से बचाने की कोशिश कर रहा था। इसकी चिंता विदेश मंत्री अयमान अल-सफादी ने भी जताई जब उन्होंने एक टीवी चैनल से बात करते हुए कि सेना ने आकलन किया है कि ड्रोन या मिसाइलों के अपने इजरायली लक्ष्यों से चूककर जॉर्डन में गिरने का खतरा है।
ईरान की तरफ़ से हाल के हमलों में अब ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ इज़रायल की मदद जॉर्डन ने की। इसमें सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) भी शामिल था। दोनों देशों ने ईरान के बारे में कई खुफिया जानकारियों इजराइल तक पहुंचाई। जो ईरान के हमलों को नाकाम करने में मददगार साबित हुईं। ईरान एक ऐसा देश है जो आतंकवाद का समर्थन करता है, और दुनिया को इससे बहुत पहले ही दूरी बना लेनी चाहिए थी। अब अमेरिका, जर्मनी, इटली और UK इजराइल को हथियार सप्लाई करके नेतन्याहू की मदद कर रहे हैं और उनमें और जोश भरने का काम कर रहे हैं।