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Zero Tariff Strategy: क्या अमेरिका देगा भारत को बड़ी रियायत?

भारत और अमेरिका के बीच प्रस्तावित द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) को लेकर बातचीत तेज़ हो गई है। लक्ष्य है 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक पहुँचाना। इस बीच “Zero-for-Zero Tariff” यानी दोनों तरफ से आयात शुल्क खत्म करने की रणनीति पर चर्चा हो रही है।
Zero Tariff Strategy: क्या अमेरिका देगा भारत को बड़ी रियायत?
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार को लेकर एक नई ऊर्जा देखी जा रही है। जहां दोनों देशों ने 2025 तक व्यापार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है, वहीं इस यात्रा में टैरिफ यानी आयात-निर्यात पर लगने वाले शुल्क सबसे बड़ा रोड़ा बने हुए हैं। लेकिन क्या आने वाले वक्त में दोनों देश “शून्य-के-लिए-शून्य” (Zero-for-Zero Tariff) की ओर बढ़ेंगे? या फिर ये एक और कूटनीतिक ख्वाब बनकर रह जाएगा?

क्या है Zero-for-Zero Tariff रणनीति?

Zero-for-Zero का मतलब है कि अगर एक देश किसी खास प्रोडक्ट पर अपना शुल्क जीरो करता है, तो दूसरा देश भी उसी प्रोडक्ट पर टैक्स खत्म कर देगा। यानी दोतरफा फ्री ट्रेड की शुरुआत। यह रणनीति तब काम करती है जब दोनों देश आर्थिक रूप से एक जैसे स्तर पर हों – जैसे अमेरिका और यूरोपीय संघ।

लेकिन जब बात आती है भारत और अमेरिका की – तो यहां मामला थोड़ा पेचीदा है। भारत अभी विकासशील राष्ट्र की श्रेणी में है, जबकि अमेरिका एक विकसित और उन्नत देश है। इसलिए एक जैसा ट्रीटमेंट देना शायद दोनों देशों के हित में न हो।

🇮🇳🇺🇸: दो अलग दुनिया, एक लक्ष्य

भारत और अमेरिका के बीच लंबे समय से व्यापारिक रिश्ते मजबूत रहे हैं। लेकिन टैरिफ की दीवार ने कई बार इन रिश्तों को सीमित किया है। अमेरिका चाहता है कि भारत अपने बाजार को ज्यादा खुले, खासकर डिजिटल, डेटा और फार्मा सेक्टर में। वहीं भारत चाहता है कि अमेरिका भारतीय उत्पादों पर लगाए गए भारी शुल्क को कम करे, खासकर स्टील, एल्युमिनियम और कृषि उत्पादों पर।

इसी को लेकर मार्च 2025 से भारत और अमेरिका के बीच Bilateral Trade Agreement (BTA) की बातचीत शुरू हुई है। अधिकारियों का कहना है कि इसका पहला चरण सितंबर-अक्टूबर 2025 तक पूरा करने की योजना है।

पैकेज डील की ओर बढ़ता भारत-अमेरिका व्यापार

सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत और अमेरिका का ये समझौता एक “पैकेज डील” होगा। यानी केवल टैरिफ नहीं, बल्कि नॉन-टैरिफ बैरियर्स, सर्विस सेक्टर, डेटा प्राइवेसी, डिजिटल ट्रेड और आईपीआर जैसे मुद्दों पर भी समझौते की गुंजाइश होगी।

एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, “अगर अमेरिका इलेक्ट्रॉनिक्स पर शून्य करता है, तो जरूरी नहीं कि भारत भी इलेक्ट्रॉनिक्स में ऐसा ही करे। हर देश की जरूरतें और प्राथमिकताएं अलग होती हैं। समझौते में सामंजस्य बनाना ज्यादा जरूरी है।”

2025 तक 500 अरब डॉलर ट्रेड का लक्ष्य

भारत और अमेरिका के बीच फिलहाल द्विपक्षीय व्यापार 191 अरब डॉलर के आसपास है। यदि सब कुछ योजना के अनुसार चलता है और बीटीए के पहले चरण में ठोस सहमति बनती है, तो 2030 तक इसे 500 अरब डॉलर तक पहुंचाना असंभव नहीं। इसके लिए दोनों देशों ने तय किया है कि वे जल्द ही सेक्टर-वाइज बातचीत शुरू करेंगे – जैसे टेक्नोलॉजी, मेडिसिन, ऑटोमोबाइल, कृषि और डेटा-सेफ्टी।

भारत की रणनीति, संतुलन बनाकर आगे बढ़ना
भारत ने अब तक जो संकेत दिए हैं, वे साफ हैं – देश अपनी संप्रभुता, किसानों और छोटे कारोबारियों के हितों के साथ कोई समझौता नहीं करेगा। वहीं, वह अमेरिकी निवेश को आकर्षित करने और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को लेकर भी उत्साहित है। भारत शायद अमेरिका को Zero-for-Zero जैसी रणनीति का “प्रतिप्रस्ताव” देकर उसे जवाबी मोर्चे पर लाना चाहता है। यानी अमेरिका अगर जवाबी टैरिफ हटाए, तो भारत भी व्यापार खोले।

29 मार्च को हुई चार दिवसीय मीटिंग में दोनों देशों ने तय किया है कि आगे वार्ताओं की गति तेज की जाएगी। आने वाले हफ्तों में विभिन्न मंत्रालयों और इंडस्ट्रीज के बीच सेक्टर-वार बातचीत होगी। यह बातचीत भविष्य की दिशा तय करेगी।

भारत और अमेरिका के बीच Zero-for-Zero Tariff रणनीति पूरी तरह संभव नहीं है, लेकिन यह जरूर हो सकता है कि कुछ सेक्टरों में समझौता हो और टैरिफ कम किए जाएं। इससे दोनों देशों को लाभ होगा – अमेरिका को भारत का बड़ा बाजार और भारत को टेक्नोलॉजी व निवेश। पर बात वहीं आकर रुक जाती है "क्या दोनों देश अपनी प्राथमिकताओं के बीच संतुलन बना पाएंगे?" यही देखना दिलचस्प होगा।
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