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Akhilesh Yadav की साजिश से पर्दा उठा तो सिर पटकने लगे Rahul Gandhi, सदमें में गांधी परिवार

राहुल गांधी को रायबरेली से चुनाव लड़वाने के पीछे आखिर किसका हाथ है। वो भी जब, जब पता है कि रायबरेली के समीकरण अब कांग्रेस के फेवर में नहीं है.
Akhilesh Yadav की साजिश से पर्दा उठा तो सिर पटकने लगे Rahul Gandhi, सदमें में गांधी परिवार
वायनाड से सांसद राहुल गांधी लंभी उठा पटक के बाद उत्तरप्रदेश आ ही गए। अमेठी से खौफ खाए राहुल ने अपनी माता जी । की सीट को चुना, और रायबरेली से पर्चा दाखिल कर दिया। लेकिन खबर ऐसी है कि राहुल ने पार्टी नेताओं के सामने ये शर्त रखी है कि अगर वो रायबरेली और वायनाड़ दोनों सीटों से जीत जाते है तो वो वायनाड़ को चुनेगें और रायबरेली को छोड़ देंगे। शायद उनका जा घोषणापत्र है वायनाड़ को ज्यादा सूट करता है।

हालांकि असल वजह क्या है वो तो गांधी परिवार ही जानता है। तो ऐसे में सवाल उठता है अगर ऐसा है तो फिर रायबरेली की जनता राहुल को क्यों जिताएगी। और इस बात को राहुल भी जानते है। लेकिन फिर भी राहुल रायबरेली से लड़ने आते है। तो वजह क्या है। तो वजह आपको बता दें कि वजह है अखिलेश यादव। जी हां। आपको थोड़ा अजीब लग सकत है। लेकिन याद करिए अखिलेश यादव ने कन्नौज की सीट से अदित्य यादव के नाम का ऐेलान किया था। लेकिन आखरी वक्त पर अदित्य का नाम पीछे कर खुद पर्चा दाखिल कर दिया। और अब भारी मान-मन्नौव्वल के बाद राहुल ने भी पर्चा दाखिल कर दिया। और अब कहा जा रहा है दो लड़को की जोड़ी यूपी में धमाल मचा देगी।

लेकिन धमाल तो हम 2017 के विधानसभा चुनाव में देख चुके है। दोनों ने मिलकर क्या ही झंडे गाढे थे। तो राहुल को यूपी क्यों बुलाया गया। जबकि पिछले 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का यूपी में वोट प्रतिशत 2.33 था। तो अब थोड़ा पीछे चलिए जब 2023 में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव थे। मध्यप्रदेश को लेकर ये चुनाव काफी सुर्खियों में रहा था। अखिलेश यादव ने मध्यप्रदेश में सीटों की मांग की थी। पहले कांग्रेस ने सपा को सीटें देने का आश्वासन दिया। लेकिन ऐन मौके पर इंकार कर दिया। कमलनाथ ने कह दिया कौन है अखिलेश वखिलेश हम नहीं जानते।

अखिलेश ने भी कांग्रेस एक एक नेता को चिरकुट कह दिया। वार पलटवार लंबा चला। और बात गठबंधन के टुटने पर आ गई। लेकिन अब पहले अखिलेश लोकसभा चुनाव के लिए पर्चा दाखिल करते है और फिर राहुल भी रायबरेली आ जाते है। तो जो राहुल गांधी लगातार यूपी आने से इंकार कर रहे थे। उन्हे यूपी में लेकर या कौन। क्या राहुल को अखिलेश ने मनाया है। और सारे समीकरण देखते हुए। राहुल क्यों यूपी लाया गया है। क्योंकि जमीन पर जो आंकडे है वो तो राहुल की जीत को पुख्ता नहीं कर रहे है। रायबरेली में कांग्रेस का वोटबैंक लगातार घट रहा है। पहले एक बार रायबरेली के आंकड़े देख लिजिए। फिर पर्दे के पीछे का खेल समझिए।

-1999 से लगातार कांग्रेस रायबरेली को जीत रही है
-2009- में सोनिया गांधी को 72 फीसदी वोट मिला था
-2014- में सोनिया को मोदी लहर में 63.8 फीसदी वोट मिला
-2019- में सोनिया का वोटबैंक घटकर 55.8 फीसदी रह गया
-हालांकि सोनिया ने ये चुनाव 167000 वोटों से जीता था

वहीं बीजेपी की अगर बात करें तो 2019 में बीजेपी का वोटशेयर यहां बढकर 38.36 पर पहुंच गया था। लेकिन बात सिर्फ इतनी बर नहीं है। खेला तो आगे हुआ है। और खेल ये है कि रायबरेली लोकसभा के अंदर पांच विधानसभा क्षेत्र आते है। बछरावां, हरचंदपुर, रायबरेली, सेरेनी, उंचाहार। और 2022 के विधानसभा चुनाव में सपा ने इन पांच में से चार जीती थी, एक बीजेपी के पास थी। लेकिन 2019 से 2024 के बीच इस सीट पर कुछ बड़े बदलाव हुए है। और बदलाव ये है कि रायबरेली सदर से विधायक अदिती सिंह जो की कांग्रेस की नेता हुआ करती थी, वो अब बीजेपी में शामिल हो चुकी है।

उंचाहार सीट से सपा विधायक मनोज पांडे भी सपा से बगावत कर चुके है। मनोज पांडे अब तक बीजेपी में शामिल तो नहीं हुए। लेकिन वो राज्यसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के उम्मीदवार के पक्ष में वोटिंग कर चुके है। खुले तौर पर समाजवादी पार्टी से बगावत कर चुके है। और कहा ऐसा जा रहा है कि मनोज पांड़े बीजेपी के दिनेश सिहं के लिए प्रचार भी कर सकते है। तो दो विधायक पांच के भीतर बीजेपी के पाले में जा चुके है। और ये दो कारण राहुल को अमेठी के हराने के लिए काफी साबित हो सकते है। क्योंकि पहले से ही सपा रायबरेली और अमेठी में कांग्रेस का समर्थन करती आई है। लेकिन अब हालात वैसे नहीं है। जैसे 2019 में हुआ करते थे। और इन्ही बदले हुए हालातों के देखते हुए सोनिया राज्यसभा का रुख कर चुकी है।

अगर सीट जीतने की गारंटी होती तो फिर सोनिया ही यहां से चुनाव लड़ती। अब आप सोच रहे होंगे की जब जीत की गारंटी नहीं है तो फिर राहुल इस सीट पर ल़डने क्यों आए है। तो हो सकता है। कि कार्यक्रताओं का मनोबल वेंटिलेटर पर जा चुका है। उसमें सांसे भरने आए हो। और ये भी हो सकता है कि अखिलेश ने दबाव बनाया हो कि जब दोनों पार्टियों का गठबंधन है तो राहुल को भी यूपी में मौजूदगी दर्ज करवानी चाहिए।

साथ ही ये भी याद रखिए कि अखिलेश का जो अपमान मध्यप्रदेश में हुआ था। वो भी पर्दे के पीछे पूरा हो ही जाएगा। अगर राहुल गांधी यहां से चुनाव लड़ते है। क्योंकि अमेठी से हारने से आज भी उनकी किरकिरी हो रही है। और अब तो बीजेपी की तरफ से अमेठी छोड़कर भागने के भी आरोप लगने लगे है। और अगर रायबरेली भी हार जाते है तो फिर बेइज्जती बहुत भारी होगी। और यहीं बेइज्जती क्या अखिलेश को सुकून देने वाली होगी। 
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